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________________ १०४ गोस सुमतिसागर रत्नकोति की प्रशंसा में कवि द्वारा निबद्ध दो गीत उपलब्ध हुए हैं। एक गीत में संवत् १६३० में वैशाख सुदी तृतीया के दिन पट्ट स्थापना का उल्लेख किया है । इसलिये गीत उसके बाद के लिखे हुए मालूम पड़ते हैं। दोनों गीतों में से एक गीत में रत्नकीर्ति के सम्बन्ध में अच्छा प्रकाश डाला गया है इसलिये उसे यहां दिया जा रहा है गीत राग-धन्यासी ॥२ ॥३॥ || ४ श्री जिनवर चरण कमल वर मधुकर गुण गण मरिण भण्डार जी । भव्य कुमुद वन रंजन दिनकर, करुणा रस जो रे, करुणा रस आगार जी । अभयनन्दि महोदय दिन मरिण भविक कमल जीरे, भविक कमल मन रंजे जी 1 रत्न कीर्ति सूरि चादि शिरोमरिण परवादी मद गजे जी || |||||| पंच महाव्रत पंच सुमति जप गुपति ग्रह गोर सोहे जी । दुःख शोक भय रोग निवारे, वाणिह त्रिभुवन मोहे जी ॥ धनि धनि हुंबड शे एह कलि काल गणवर जाया जी | मेहेजलदे देवदास सुनन्दन रत्नकीति सूरी शया जी ॥ वक्षरण देश विचार विलक्षण जालणापुर जगिसारां जी | संघपति पार्क साहू विख्यात संघर्षाणि रुपाई उदार जी ॥ ते बहें कूले कुचर उपमा संघवी आसवा प्रति गुणमाल जी । संत्री रामाजी अंगे शुभ लक्षण, वभेरवाल सुनिशान जी ।। संवत् सोलसा त्रिस संवर नेशाख शुदि त्रीज सार जी | अभयनन्दि गोर पाटि थाप्या रोहिणी नक्षत्र पानिवार जी || आगम काव्य पुराण सुनक्षण तर्क ग्यास गुरु जाणे जी । छन्द नाटिक सिंगल सिद्धान्त, पृथक पृथक वखाणं जी ॥ कनक कांति शोभित तस मात्र, मधुर सभान सुवाणि जी । मदन भाग पदन पंचानन भारती भन्छ सम्मान जो ॥ श्री अभयनन्दि सुरो यह धुरंधर मकलसंघ सुमतिसागर बस प्रण में निर्मल संयग ।। ५३ । 114 11 पाय ४. नेमिनाथ का द्वादश मासा इसमें नेमि के विरह में राजुल के बारह महिने कैसे व्यतीत होते हैं इसका वर्णन किया जाता है। इसमें १३ पद्य हैं जिनमें एक-एक महिने के विरह का वर्णन मिलता है। ग्रन्तिम १३वें पद्म में प्रशस्ति दी हुई है जो निम्न प्रकार है जयकार जी | धारी जी ॥ 1190 ||5|| 11/1
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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