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भट्टारक रलकोति कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१०५ श्री लक्ष्मीचन्द्र मुनीसरु अभिचन्द्र पोट सु सार। तस पार्ट चारित्र चतुर जाणु अभिनन्दि गुणधार । बहु प्रकारिइ पूजो थी जिन माणिक देवी सुमंत । श्री सुमतिसागर दोठव जिनवर नेमि जय गुणवन्त ।।
रूप सोभागिण चन्दन जाये ।। ५६. दामोर
दामोदर भट्टारकीय पंडित थे। इन्होंने भट्टारक रनकीति से लेकर भट्टारक अभय चन्द्र तक का समय देखा था। इसलिये तीनों ही मट्टारकों के सम्बन्ध में इन्होंने गीत लिखे हैं। इसके अतिरिक्त "संघवी नागजी" गीत भी लिखा है। मभयमाद्र के प्रति इनकी अधिक भक्ति थी। इनके द्वारा लिखा हुमा एक गीत देखिये
राग धन्यासी
मादि जिणंद नमी करी प्रणमी सह गोर पाय । अभयचाद्र गुण गायेस्यु माहरे हैहले हरष न माय । सहिली सहे गोर गाई ये रे गौर कुमुदचन्द्र ने भाण । श्री अभयचन्द्र चतुर-सुजाण........." ममयनन्दी नवो गौतम ए गोर प्रगट्यो शील तण सिणगार ।। वादी विमिरहर दिनकरु, सरस्वती गछ साधार । ३ । हूंवर वंश शृंगार गिरोमणि श्रीपाल साधन मात । बारडोली नरि उछव कौधो महोश्य अन्न मवार । संघवी नागरी प्रति प्राणंद्या, हेमजी हरष अपार । ४ | संघवी कुरजी कुल मण्डन मेघजी महिमावंत । रूपजी मालजी मनोहार, सह सज्जन मन मोहंत ५। संपर्व भीमजी भावस्यु' सुत जीवा मनें उल्हास ।। संपवई जीवराज उलट धरणो, पहोती छ मन सभी पास । ६ । संवत सोल पच्यासीये फागुण सुदि एकादशी सोमवार । नेमिचन्द्र मुर मंत्रम जाप्यो, वरतयो जयकार । ७। उत्तर वक्षण पूरव पश्चिम माने सहे गोर प्रांण । विलक करे श्री प्रभयचन्द्र गोर, वचन का प्रमाण । ८ ।