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भट्टारक रस्नकीर्ति एव कुमुदनन्द्र : यति। एवं कृतित्व
२. साधर्मी गीत
यह भी सम्बोधनात्पक मी न हो। जिसमें १: पम्मले हैं। हमें गणपन्दि सापक के समय लिखा गमा था । मीत में संसार की भयानकता पर प्रकाश डाला गया है।
३. नेमि गीत
राजन नेपि के अभाव में अपने प्रापको कैसी समझती है, इसी का गीत में वर्णन किया गया है । गीत अमला है । इमीलिये यहां उसे दिया जा रहा है
ममि अात्मा राजमति घर कामा छे सम्बन्ध करे । परि परिना दूब गप र ने frम सहिथे, कु वियोगन रे ।। नारि भणे ग मुल नायर, दुम गुम बनो संयोग न रे। एफ मेक थईबीर नीर. तिमली । जो सारो भोगन रे। तुम बिन मुख ग निदा मागे तुम पिन न हिय संयोगन रे । तुझ बिन रजे एकला भाई, किगे दुम्बिया नियोगन रे । F चारी मुरण वन्तीजी, नेमि कामु कीजे जायन रे। सफला साल चतुराई, नाथ नहीं मुझ उम्दन रे। जिम विना प्रतिमा देहरो जो, गुण बिना रूप न सोभे रे । जिम बिना परिमल फन न मोभे, सरोवर कमल विहान र । धमं दया दिना कदा न सोमे ज्ञान विहूणो जीवन रे । कि।' बिना जम मुनिवर दौसे, दुखिया फिरे संसारन । दान विना जिम लखनी f:नि, पार बिना जिम दामन रे । घोप बिना भोजन नचि मोभे. कला विहूरो योधन रे । वित्रा बिना जिम नर नी भाई. न शोभे बहु मध्यन रे । तह बिना जम प्रीति न शोभ, निगहूं तुझ बिना नाथन रे । जलचर जन बिन दलबले जी, तमई तुम बिना पंष्टिय रे । एक विस गणवन्त प्रीती, ने प्रश् डिगन छ । गरसवे सरिणु गेल पिने, कतार तु का खडे रे ।
। विना नदि संपने जी, म वाले राजुल मडिय रे ।।५।। घन्तर गझ थी नवि करियजी. तुम्ह विन मुझ नवि कोहम रे । तुम्ह बिन को मर महीतल दामे, नवि दीरो मुल पो मन रे, ते नारि किम मानरा जी, करि सघला नर एक तालन रे । श्री अभयनन्दि वादी पंनापण, मुमतिसागर इस बोलन रे ।
इति नेमिगीत