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________________ सुमलिसागर ममयनन्दि गोर पार पट्टोधर, रत्न कीति मुनिन्द रे। तस पाटि सोहे कुमुदचन्द्र गोर, गणेस कहे प्राणंद रे॥ ॥९॥ इस प्रकार गणे. कवि ने भट्टारकों के सम्बन्ध में जो गीत, प्रभ. ति लिखी है वह इतिहास की दृष्टि से प्रस्पधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन गणेश कवि के सम्बन्ध में इन गीतों से कोई जानकारी नहीं मिलती। यह भवाय है कि उन्होंने कुमुदचन्द्र का प टोत्सव देखा था तथा कुछ समय तक जीवित भी रहे थे। क्योंकि यदि प्रत्रिक रामय जीवित रहते तो उनको सम्बन्ध में और भी गीत लिखते। ५५. सुपतिसागर ये भट्टारक प्रभवन्दि के 'शष्य थे । माने गरु भट्टारक प्रभयनन्दि के साथ रहते थे। उनके बिहार के ममा जा साध रण को मटार जी के प्रति भक्तिभावना प्रगर करने की प्रेरणा दिया करते थे। भट्टारक अभयदि के पश्चात जब रत्नकीति भट्टारक बने तो वे रीति के प्रिप गिप्य बन गये । वैसे गुरु भाई होने के कारण रस्नकोनि इसका वहत सम्मान करते थे । इन्होंने रलकीति की प्रशंसा में भी गीत लिखे हैं। इनकी अब तक जो कृतिया उपलब्ध हुई है उनके नाम निम्न प्रकार है १ हरियाली-दो २. साधर्मी गीत ३. नेमिगीत ४. गणधर बिनती ५. रलकीति गीत ६. नेमिनाथ द्वादशमासा ७. प्राय गीत १. हरिपाली कवि ने हरियाली के नाम से दो गीत लिखे हैं। इनमें मानव के जन्म के सम्बन्ध में तथ्य लिखे गये है। मनुष्य को चारों पोर हरियाली ही हरियाली दिखती है उसमें वह अपना सब कुछ भूल जाता है जो उचित नहीं। इसी तथ्य को कषि ने अपने दोनों गीतों में निबद्ध किया है। गीतों में भट्टारक प्रभयनन्दि के माम का उल्लेख किया है इससे में उन्हीं के समय लिखे हुए गीत लगते हैं।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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