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________________ भट्टारक रलकाति एवं कुमुदचन्द्र : सपक्तिरा एवं कृतित्व पणक, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकों का वर्णन किया गया हैं । कल्याणक गीत की रचना धोधानमर में चन्द्रप्रभ चैत्यालय में की गई थी । इसमें पांच बाल्या. एणकों की पांच हालें हैं। २४. कविवर गणेगा गणेश कवि भट्टारक रत्नमीति का प्रमुग्य शिष्य एवं प्रशंसक थे। इन्होंने अपने गुरु एवं प्राधपदाता के सम्बन्ध में जिसने मार लिखे है उतने दूसरे करियों ने बहुत कम लिखे हैं। गणेग कवि के सभी गीत याने पीछ इतिहास लिये हुए हैं। पे कभी विहार के समय के, कमी याया संवों का नेतत्व करते समय के, कभी जनता से भट्टारक रत्नकीर्ति का स्वागत करने हेतु प्रेरणा देने के उद्देश्य से लिखे गये हैं। गगेश कवि बहुत सुसंस्कृत मापा में रत्तकोति की प्रशसा करता है । इस प्रकार के गीतों की संख्या १२-१३ होगी। इन गीतों में गयेय कवि भक्तिभाव से रस्तकीति भट्टारक का मुगानुया.६ करता है । इन गीतो न भट्टारक के माता सा का नाम, बश का नाम, जन्म स्था। का नाम, भारत पर प्राप्त करने का स्थान, सरोर की सुन्दरता, कमनीयता, अंग-प्रत्ययों की वन वट यादि के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन किया गया है। इसी तरह का एक पद देखिये रोग केवार गडी साभल सजनी सहे गोर सोहेरे । रत्नोति सूरी जनगन मोहे रे ॥ अभयनन्द पद कंज उदयो सूर रे, कुमति तिमिर हर विद्या पूर रे ॥१॥ हुँचड़ वंय त्रिमुध बिछर स रे, म.त सेहे बलदे देशास तव रे । पर कलानिषि कोमल काय रे, पद पूजो प्रेमे पातक पलाय रे ॥२॥ श्री पूलसंघ महिमा विधान रे, सरसति गछ गोर गोयम समान रे । पर शशि समा सोहे शुभ भाल रे, वदन कमल शुभ नया विशनो ॥३॥ मशन दाडिम सम रसना रसाल रे. अधर बिलीफल विजिन प्रनाल रे। कर कबू सम। रेवाश्रय सजे रे, कर किसलय सपना छवि छाजे रे ।। हत्य विसाल पर गज गति चाल रे, गछपत गुस्यो गंभीर मुणमाल रे । पच महायत धर दया प्रतिपाल रे पंच समिति य गुपति गुणाल रे ।।५।। उदयो अवनि प्रभय फुमार रे, दिगावर दर्सण तणो सणगार रे। सयल प्रवल वल ग जीतो पार रे, शील मोभागी रघर उदार रे ।।६।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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