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________________ को प्राज में रूपान्तरित करता है | मान कर चलें कि जो कृति आज अापको एक वेष्टन में प्रस्त-व्यस्त मिल रही है, उसका भी कभी कोई याज था और यह भी कभी किसी शिल्पी के भाषना-गर्भ में कोई प्रतीक्षित कल रही थी। कितना रोमांचक है यह सब ! ! ऐसी हजारों हजार कृतियों को छुपा है डा० कासलीवाल ने और जाना है उनके 'पाज" को अपनी संवेदनशील अंगुलियों के जरिये'. फिर भी कहना होगा कि अभी काम सनई और सनी पूर्ण । कि किसी ऐसे समीक्षक/पाठालोचक की प्रामभकता है, जो सवेदनशील होने के साथ ही एक निर्मम भाषाविज्ञानी भी हो - ऐसा, जो तथ्य को तथ्य मानने के अलावा और कुछ मानने को ही सहज तयार न हो । ग़ापेक्ष दुष्टि से अभी साहित्य/माषा के विविध स्तरीन प्रन्तः संबंधों के विश्लेषण समीक्षण की जरूरत से भी हम मुह नहीं मोड़ सकते । श्री महावीर ग्रन्थ प्रकार मी, जयपुर ने इस दिशा में मात्र रचनात्मक कदम ही नहीं उठाये हैं अपितु 3 बहुमूल्य अन्यों के प्रकाशन द्वारा कुछ ऐसे ठोस प्राधार प्रस्तुत कर दिये हैं, जो भारतीय बाई भय को अधिक गहराई में से समझने की दिशा में बहुत उपयोगी भूमिका निभायेंगे । जब तक चारों ओर से हमारे पास इस तरह की सामग्री एक बयाकलित नहीं हो जाती. तब तक कोई निश्चित शक्ल हम इतिहास को नहीं दे सकते । इतिहास भी एक जेनरेटिव्ह' अस्तित्व है। इस संदर्भ में डा. कासलीवाल/महावीर अन्य अकादमी की भूमिका ऐतिहासिक है, और इसलिए अविस्मरणीय हैं। हिन्दी/साहित्य का दुर्भाग्य रहा है कि उसका कोई एकीकृत संश्लिष्ट अध्ययन अभी तक नहीं हो पाया है। उसके इस अध्ययन को यदि कहीं शुरू हया भी है तो अग्रेजी या राजनीति ने छिन्नभिन्न/वाधित किया है और उसे एक धारावाहिक प्रक्रिया नहीं बनने दिया है हिन्दी- कोश- रचना का इतिहास इसका एक जीवन्त उदाहरण है। भारत की लोकभाषानों का, वस्तुतः, अध्ययन अनुसंधान जैसा होना चाहिए था वैसा हो नहीं पाया है और कई दुर्लभ स्रोत अव नष्ट हो गए हैं। मांचलिक बोलियों के सुर (टोनेशन) का प्रध्ययन' तो अब इसलिए असंभव हो गया है कि इनमें से बहुतों के प्रयोना ही अब नहीं रहे हैं। लगता है यही हा अव हमारी पाण्डुलिपियों का होने वाला है । हमारे शास्त्र- भण्डारों में सदियों से सुरक्षित साहित्य भी अब जीरोद्धार के लिए उद्ग्रीव उत्कण्ठित है । डा० कासलीवाल ने तो अभी लिफाफे पर लिखे जाने वाले पतों की सुत्रियां दी हैं, असली पर लिखाने का काम तो उनके अकादमी ने शुरु किया है । सुचियाँ मात्र इन्फर्मान' हैं, ग्रन्थ-संपादन उनके बाद का सोपान है । अकादमी की मुश्किलें बहुत स्पष्ट है। एक तो लोगों की मनोवृत्ति ग्रन्थों
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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