________________
द्वार
मात्र
निरिण प्राप्त किया था । इसलिये यह पहाड़ जनों के अनुसार सिद्ध क्षेत्र की कोटि में माता है । इस क्षेत्र की भट्टारक रत्नचन्द्र ने संघ' सहित संवत् १७४५ में यात्रा की थी। उसी समय यह गीत लिखागया था। इसमें ११ पद्य है। काव्य एवं भाषा की इष्टि से गीत सागाम्य है लेकिन वह ऐतिहासिक बन गया हैं । गीत के ऐतिहासिक स्थल वाले पद्य निम्न प्रकार हैं
संवत सत्तर परतालीसे कोई संघपति अबई सार रे । संघ सहित जाया करी, मुख बोले जय जयकार रे । थी मूल संधे मोहाकर काई गछपति गंगा भण्डार रे। रनचन्द्र सुरिबर कहो, कई गावो नर ने नार रे ।।१।।
(5) "चिन्तामणी पारसनाथन गौत" भी ऐतिहासिक बन गया है। प्रकलेश्वर नगर में चिन्तामगि पार्श्वनाथ का मन्दिर था। भट्टार रत्नचन्द्र उस मन्दिर के बड़े प्रशंसक थे। वहां बडे ठाट से प्रष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा होती थी। पूर। गीत निस्न प्रकार है---
श्री चितामणि पूजो रे पाम, वांछिन पोहोचरी मनाणी धाम । प्रायो रे भविय राहू मली सग, सुविध पूज्य रे करो मन रंगे । देस मनोहर कागी रे, सोहे, नगर वनारसी जय मन मोहे प्रावो रे।। विश्वनेन राजा रे राज करत, ब्रह्मादेवी राधी गु प्रेम धरंत । तस कुल अयर अभीनवो चन्द, उदयो अनोपन पाम जिनेंद । नीलवरण नय हस्त उत्तंग, निकाय काम कलाघर संग । सुरगर स्वग पगी सेवित पाय, ग़त मबार पूरण प्राय । एकदा अस्थीर मंसार जाणि चारित्र ली रे मनेग प्राणी । तप बले उपनु केवल' ज्ञान, लोकालोक प्रफासी रे भान । सेव करम सहु दूर करी ने, मुर्गात वधुवरी प्रेम घरी ने । दर्शन ज्ञन रे वीर्य रानंत, गाम्या सौरूप प्रनतारेनंत । वांछित पूरे रे पंचम वाले, संकट को विधन महु टाले । श्री अंकलेशवर नगर निवास, संघ सपाल तणी पूरे रे पारा । मुनी शुभचन्द चरण ची प्राणी, गुरि रतनचन्द्र वदे अमृत वाणी। प्रावो रे भवियण सहु मली अधे, व सुविध' पूजा रे करो मन रांगे ।
(६) बावनगजागीत-मट्टारक रत्नपन्द्र ने संवत १६५६ में बावनगज मिद्ध क्षेत्र की संघ सहित यात्रा की थी। इसको चूलगिरि भी कहते हैं। यहां से पाच