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भट्टारक रत्नकीति कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भट्टारक रत्नचन्द्र की साहित्य रचना में विशेष रुचि थी। लेकिन अपने पूर्व गुरुयों के समान के भी छोटी-छोटी रचनाओ के निर्माण में रुचि रखते थे। अब तक उनकी निम्न रचनाएं मिल चुकी है
१. वृषभ गीत अपर नाम आदिनाथ गीत २. प्रभाति
३. गीत आदिनाथ
४. बलिभद्रनु गीत
५. चिन्तामणि गीत
६. बावनगज गीत
७. गीस
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(१) आदिनाथ के स्तवन में लिखा हुआ यह छो। सा पद है किन्तु भाव भाषा एवं शैली की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पूरा पद निम्न प्रकार है
वृषभ जिन सेवी सुखकार ।
परम निरंजन भवभय भंजन संसारार्णवतार || वृषभ। टेक नाभिराय कुलमंडन जिनवर जनम्या जगदाधार ।
मन मोहन मरुदेवी नन्दन, सकल कला गुणधार ॥ वृषभ ॥
कनक कांतिसम देह मनोहर, पांसें धनुष उदार । उज्वल रत्नचन्द्र सम कौरति विस्तरी भुवन मझार || वृषभ ||
(२) प्रभाति में भी भगवान यादिनाथ की ही स्तुति की गयी है । प्रभाति में ९ अन्तरे हैं तथा वह " सुप्रात समरो जितराज, सकल मत वांछित संपजे काज " से प्रारम्भ की गयी है ।
(३) राग श्रावरी में निबद्ध शाविनाथ गीत भी भगवान प्रादिनाथ के स्तवन के रूप में लिखा गया है। लेकिन भाव भाषा एवं शैली की दृष्टि से जैसा उक्त पद है वंसा यह गीत नहीं लिखा जा सका। इसकी भाषा भी गुजराती प्रभावित है । गीत वर्णनात्मक है काव्यात्मक नहीं । अन्त में कवि ने गोत की समाप्ति निम्न प्रकार की है—
जय जय श्री जिननाथ निरंजन वांछित पूरे आस रे ।
श्री शुभचन्द्र पटीर व्रज दीनकर, रत्नचन्द्र कहे भासरे ॥ ९ ॥
(4) बलिस्नु गीत - श्री कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र ने तुंगी पहाड़ से