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________________ भट्टारक रेनचन्न जुग प्रादि जिनपति मये पावन, पतित उदाहरण नाभि के नंदा । दीन दयाल कृपा निधि सागर, पार करो अघ-निभिर जिनेंदा 1॥२॥ केवल ग्यान थे सब कछ जानत, माल अन प्रभु मो महि मंदा। . देखत दिन-दिन घरण सरण ते. विनती करत यो गरि गुभदा ॥३॥ ५१. मट्टारक ररमचन्द्र ये भट्टारक पामचन्द्र के शिष्य थे और उनके स्वगंवाम के पश्चात् भट्टारक गादी पर बंद थे । एक प्रशस्ति यो अनुमार ये संवत् १७४८ कार्तिक शुक्ला पंचमी को भष्ट्रारक पर पर पापीन थे । पं० श्रीपाल ने एक प्रभाती गीत में म. रहनचन्द्र के सम्बन्ध में निम्नगीत लिखा है जिसके अनुसार रत्नबन्द्र अत्यधिक सुन्दर एवं प्रग प्रत्यगों से मनोहारी लगने थे । वे विद्वान थे 1 सिद्धान्त प्रमों के पासी थे तथा प्रष्ट सहनी जसे कष्ट साध्य प्रन्यों के पारगामी प्रध्यता थे । पुरा नमाति गीत निम्न प्रकार है प्राल समे समरो सुखदाय वांदीय रतननन्द्र मुरी राप । रूप देखी गयो इन्द्र प्राबाम गमने गज हंस रह.या वनवास । वदन देवि पाशधर हो खीण लोचने बाजीया रज मृग मीन । जेहनां वपन तागे भडकाये सकन वादीचवर निज वा धाय । शील प्रसिवर करि काम निहंई क्रोध माया मद लोभ में ठंडे पव मिश्चात तणा मद अंडे प्रबल पवेन्द्री महा रिगु इंड नव नय तत्व सिद्धन्ति प्रकार भलीयरे श्री दि। नागा; गरा प्रष्टसहस्री प्रादि ग्रन्थ अनेक चार जिन बेर लइ वियफ श्री गुपचन्द्र पटोदर राय गछपति सचन्द्र ना पाप मपहा मूलसंधे गुरु पह वियुष श्रीपाल कहे गुणगह
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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