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मट्टारक रलकीर्ति कुमुदचन्द्र : व्यक्तिस्व एवं कृतित्य
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करोड मुनियों ने निर्वाग प्राप्त किया। संघ में कितने ही श्रावक थे जिनमें संधवी
खई, अम्बाई, संघी शांति, माणकजी, अमीचन्द, हेमचन्द, प्रेमचन्द, रामाबाई प्रादि के नाम उल्लेखनीय है । जब संघ राज नगर पाया तो राणा मोहन सिंह ने सबका स्वागत किया। बावनगा सिद्ध क्षेत्र पर जब संघ पहुँचा तो संघ के साथ भवारक रत्नचन्द्र भी चलगिरि पर चढे । उहा सानन्द भगवान की पूजा की तथा भट्टारकजी ने संघपति के तिलक किया । उस दिन पौष सुदी ३ सोमवार था तथा संवत १७५७ था । मात्र ऐतिहासिक है इसम पूरा भीत यहाँ दिया जा रहा दे
श्री जिन चरण कमल नमु, सरस्वति प्रणम् पावरे । चूलगिरि गुन वर्ण, श्री शुभचन्द्र पसावरे ॥१॥ पवित्र चूल गिरि भेोये मिलियो संघ सोहाम, पूजया बावनगज पायरे । पांच कोड मुगि सिंह वा, जेगो स्त।। सुर रायरे ।।२।। कुवरजी कुलमंडन हया, संघीय प्रवद अ बाई गणवाण रे । तेह कुल अम्बर चांदलो, संघ विणति धोलो भाई जागरे ।।३।। संघवी अम्बई मृत अमरसी, गाणकाजी अमीचन्द जोडरे । तेह सगा कुदर कौडामणा, हेमचन्द प्रेमचन्द ते संघनो कोहरे ।।४।। रामाबाई बहनी इम कहे, भाई संघतिलक जस लीजे रे । रतनचन्द्र गुरपद नमी, संघना काम ते उत्तम कीजे रे ||५|| एने वचने गज्जन हरखिया, मुरत लिधो गरु पासेरे।। मार्गसीर सुदी पंचमी, गुरु श्रीसंघ पूरे पासरे ॥६॥ सनय सनप ध नालिये, फियो मेदा ने मीलान रे। राज पुरिगोकडोराजायो रागो मोहसिंध चतुर सुजान रे ||३|| संच यायो से जाणि करि, राये सुभट भेज्यो ते निवार रे । जात्रा करी संघ प्राणीयो, राजपुर नगर मझार रे ।३८|| संघवी प्रावि राणाजो ने मील्या, राणा जीये द्विधा घणा मान रे ।। संघ मले हां प्रावियो, आपे फोफल पान रे ॥९॥ जीवनदास ने राय इम फहे, तहमे जा करावो सार रे । राय प्राज्ञा मस्तग धरी, संघने लेइ चाल्यो ते निवार रे ॥१०॥ बडवानि माबिडे राविधा, मिलियो श्रीसंत्र सार है। चूलगिरि डगर चढ्या, त्यारे मुखे बोले जयकार रे ॥११॥ पूज्य तिहा बहुविध हथि, वा सुखकार रे । संघ पूज हवि सोभति, जाधक बोले मंगलाघार रे ॥१२॥