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भरतेश वैभव कहने लगी कि स्वामिन् ! आज कुसुमाजी रानीके महलमें भोजनको जाना यह उत्तम होगा । तब सम्राट्ने प्रश्न किया कि यह क्यों ?
तब पण्डिता बोली कि स्वामिन् ! नवीन काव्यको रचनाके उपलक्ष्य में आपने दो रानियोंका सन्मान इस मभाभबनमें ही किया परन्तु नीसरी रानीका सन्मान नहीं किया है। वस्तुतः देखा जाय तो कुसुमाजी ही उस काव्यको जननी हैं। इनका सम्मान अवश्य होना चाहिए। इसलिए आप उनके प्रासादमें जाकर भोजन करें तो उसका मन्मान हो सकता है।
इण्डिताकी मुझको देखकर सब रानियाँ आनन्दित हो गईं। कहने लगी ठीक है । ऐसा ही होना चाहिये ।
पण्डिताने कुम्माजीसे भी कहा कि बहिन ! आज तुम्हारे महलमें पतिदेवता भोजन होगा । जाओ ! भोजनकी मब तैयारी करो।
ऐसा कहनेपर कुसुमाजी और भी लज्जिन हुई । तब अन्य स्त्रियोंने ज्ञात किया कि यह हमारे सामने लज्जित हो रही है, इसलिए इसकी लज्जा दूर कर देनी चाहिये ऐमा विचारकर वे चतुर रानियां कहने लगी बहिन जाओ ! जाओ ! आज पतिदेवको भोजन करानेका सौभाग्य तुम्हें मिला है ऐसा हम समझती हैं। जाओ, सब तैयारी करो ऐसा कहकर सबने उसे भेज दिया ।
कुसुमाजीके महल में आज सम्राट भरतका भोजन होगा। सचमुच में वह भाग्यवती है। इतना ही नहीं बह गुणवती भी है । व्यन्तरकन्याने जिसकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की, जिसने अपने मनोगत विचारसे भरतचक्रवर्तीके हृदयको भी हिला दिया ऐमी कुमुमाजी सचमुच में प्रशंसनीय हैं। इसीलिए भरतेश्वरके चित्तने उसके महलमें भोजन करनेत्री स्वीकृति दे दी।
अब सभा समाप्त हुई। सभी स्त्रियाँ एक-एक कर भरतको नमस्कार कर वहाँसे जाने लगीं। बेशधारिणी दासियाँ भी सबकी प्रशंसा करती हुई उनको भेजने लगीं।
बे दासियां अमराजी-मुमनाजीसे कहने लगी माता ! आप लोगोंके मुखपर आज हर्षकी रेखा है। इसका क्या कारण है ? हो ! हम समझ गई। चक्रवर्तीने सभामें आप लोगोंका मन्मान किया है इसीका हर्ष होगा। - इस प्रकार कई तरहसे विनोद करती हुईं वे सब रानियाँ वहाँसे चली गईं। सबके जानेके बाद भरतने विचार किया कि मेरा समय