________________
७
भरोग वाम की सेवामें भेंट रखकर आनंदसे उनको नमस्कार करें। इस प्रकार कहकर सब स्त्रियाँ सम्राट्के पासमें गई ।
तदनन्तर हरएक स्त्रीने एकएक आभरण भरतेश्वरके चरणमें भेंट रखकर बहुत भक्तिसे स्वामीको नमस्कार किया। बात ही बातमें वहाँपर आभरणकी बड़ी राशि खड़ी हो गई ।
सम्राटभी रानियोंकी विचित्र भक्ति देखकर प्रसन्न हुए। वे पण्डि. तासे कहने लगे कि पण्डिता ! देखो तो सही! अमराजी, सुमनाजी व कुसुमाजीका विवाद किधर चला गया। अब तो वे लोग प्रसन्न दिखती हैं । अभीतक वे तीनों आपस में झगड़ा कर रही थीं। अब शान्त हैं, इसका कारण क्या है ?
स्वामिन् ! ठीक है । क्या सुमनाजी व कुसुमाजी में कभी मनोवैषम्य हो सकता है ? __ आजी अर्थात् खडगके युद्ध में अपाय हो सकता है। परन्तु ( कुसुम आजि ) फूलके युद्ध में वह क्यों सम्भव हो सकता है ? दूसरी बात, असुरोंके युद्धमें कठोरता भले ही हो, परन्तु देवोंके युद्ध में (अमर आजि) वह कठोरता क्यों हो सकती है? ___पण्डिताके इस वचनचातुर्यको सुनकर सम्राट अत्यन्त प्रसन्न हो कहने लगे कि तुमने बहुत अच्छा कहा, लो तुम्हारे लिए यह सोनेके आभरण भेंटमें देता हूँ ऐसा कहकर पण्डिताको पुरस्कार दिया ।
स्वामिन् ! इन नारीरूप मणियोंके मध्यमें गुणनिधिस्वरूप में चिरकालतक रहकर आप भोगसाम्राज्यका पालन करें यह कहक र पण्डिता अलग जाकर खड़ी हो गई। फिर न मालूम भरतजीके मन में क्या आया कि पण्डिताको बुलाकर कहने लगे पण्डिता ! हम आज अपने महलमें भोजन करे यह ठीक है या हमारी किसी एक रानीके महल में जाकर भोजन करें वह ठीक होगा? बोलो ।
पण्डिता समझ गई कि गम्राट कुसुमाजी पर प्रसन्न हो गये हैं। उनके महल में जाकर भोजन करने की इनकी इच्छा है। वह कहने लगी स्वामिन् ! किसी एक रानीके महलमें जाकर भोजन करना आपके लिये श्रेयस्कर है।
तो फिर कहो किस रानीके महल में जाऊँ ?
स्वामिन् ! इसका उत्तर जरा विचार करके दूंगी ऐसा कहकर पण्डिता मौनसे खड़ी हो गई, फिर आँख मींचकर जरा विचार करके