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________________ भरतेश वैभव उपाय कहना था सो करके दिखाया। इसमें क्या बिगड़ा ? विचार तो करो, सम्राट्ने उत्तर दिया । तब दोनों परस्परमें कहने लगी बहिन ! हम लोग पतिदेवको नहीं जीत सकती हैं। ऐसी अवस्था में उनसे अधिक बात करना अपने ऊपर आपत्ति मोल लेना है। इमलिए यहाँसे अपनी बहिनोंके पास जाना अच्छा है । ऐसा कहकार उधर जाने लगीं। __ कुसुमाजीको सामने देखकर कहने लगी बहिन ! तुम जो कुछ बोली थी वह सत्य हुआ। हम दोनोंने तुम्हारी स्तुति की उसका फल हम लोगोंको इस प्रकार मिला। क्या विचित्रता है ? ___ ठीक बात है । बहिनों ! तुम लोगोंने मेरी झठी प्रशंसा क्यों की ? मेरे अन्दर ऐसे कौनसे गुण हैं ? विशेष गुणी लोग हीन गुणियोंकी प्रशंसा कभी न करें। अन्यथा इसका परिणाम ऐसा ही होता है । कदाचित मैं छोटी है, और आप लोगोंकी प्रशंसा कहें तो कोई आपति नहीं है। ऐसी अवस्थामें आप लोग मेरी प्रशंसा करें यह क्या अच्छी बात है ? क्या छोटी बड़ो में कोई भेद नहीं है ? बनि ! क्या आप इसे नहीं जानती हैं ? तब वे दोनों कहने लगी कि बहिन ! तुम इतना रुष्ट क्यों होती हो ? हम लोगोंने विनोदके लिए तुम्हारी प्रशंसा की है और कोई बात नहीं है। तब तो मैं भी बिनोदके लिए ही हष्ट हो गई हूँ और कोई बात नहीं" कुसुमाजीने कहा । भरतेश इन बहिनोंके विनोदव्यवहारको देखकर मन ही मन हँस रहे थे। ___ इतने में कुछ रानियां कहने लगी कि बहिनों ! इसमें क्या बिगड़ा ? आप लोग इस प्रकार चर्चा क्यों कर रही हैं ? विशेष वाचाल बनना भी स्त्रियों का धर्म नहीं है । मुईके साथ रहनेवाले डोरेके ममान अपने पति की आज्ञा पालन करती हुई रहना यह कुलस्त्रियों का धर्म है। स्वामीके मनको जो बात अनुकूल है, वही बात हम लोगोंके लिए भी अनकल रहना चाहिये । अपने पतिके समान वैभव अन्यत्र कहीं देखनेको मिलेगा ? कभी अपने पतिदेवने सभामें मुंह खोलकर अपनी प्रसन्नता प्रगट नहीं की। आज उन्होंने जो प्रसन्नता प्रकट की है, वह बड़े भाग्य की बात है । इस प्रकार सब स्त्रियोंने हर्ष मनाया। यह विनोदपूर्ण घटना हुई कि नवीन काव्यको हम लोगोंने सुन लिया, पतिदेवको भी हर्ष हुआ । अब चलो ! हम सब चलकर स्वामी
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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