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इसलिये भाई-भाईमें परस्पर युद्ध हुआ। उसमें भुजबलिको विजय हुई। पीछे राज्यके लिये मुझे भाईसे युद्ध करना पड़ा इस प्रकारके पश्चात्तापसे वैराग्य पाकर भरतको राज्य सौंपकर दीक्षा लेकर चला गया । इस प्रकार पुराणों में कथन है। परन्तु कविने अपने चातुर्यसे भरतको घोरोदात्तरूपसे वर्णन करनेकी सदिच्छासे कथाभागको तत्वाविरोध रूपसे थोड़ा बदलकर भरतेशको ही जय हुई है । वह मी बाहुबलिके साथ युट न करके भरतने केवल अपने बचनपातुर्यसे ही बाहुबलिको परास्त किया, जिससे लज्जित होकर वह विरक्त हुआ ऐसा लिखा है। यहापर पाठकोंको जनागममें परस्पर विरोधिताका भास हो सकता है। परन्तु वस्तुतः विरोध नहीं है। यह भरतेश वैभव होनेसे भरतको धीर, उदास्त व उच्च पात्रके रूप में वर्णन करना यह काम्यका धर्म है। फिर भी दूरदर्शितासे कविने आगमविरोधाभासके प्रमको दूर करने के लिये ही मानों उस समय भरतके मुखसे यह कहलाया है कि "अरे भाई ! मैंने युद्धसे सरफर तुमको बातोंमें टाल दिया ऐसा पायद मनमें कहोगे । वैन । तुम जिया हंगी के निजी से हो रम तुम्हारे लिए अवश्य विजय है। सामान्य मनुष्योंके समान युद्ध करनेकी क्या आवश्यकता है। अच्छा ! सही ! तुम जोते हम हार गये। मेरे भाईकी जीत मेरी जीत महीं क्या ! मुझे जरा भी मनमें क्लेश नहीं है। इससे भी वाचक ठीक-ठोक अर्थ समझेंगे । बाहुबलि आदि कामदेव. था, इसलिए ग्रंपमें बाइबलिक लिए पत्र सत्र कामदेवके पर्यायवाची शब्द उपयोगमें लाये गये है। बाहुबल्किी पट्टरानी इच्छा महादेवी, मन्त्री प्रणयचन्द्र, सेनापति वसंतक, पट्टहाथी माकप । माहुबलिका जोधन पूर्वमें तिरस्कार पश्चात् अनुराग उत्पन्न होने लायक है। यही बाइबलि अब गोम्मटस्वामी कहलाते हैं।
बद्धिसागर--भरतेशका मंत्री है। वह चक्रवर्तकि लिए दाहिने हाथके समान रहकर अपने अनुभवसे चक्रवर्तीके सर्व कार्य बुद्धिमत्तासे साधन करता था। उसके लिए अन्तपुरप्रवेश भी निषिद्ध नहीं था। वह चक्रवर्तीके मनोगत विषयको पहलेसे समझकर उसी प्रकार सर्व व्यवस्था करता था। चक्रवर्तीके मित्र भागघ, वरतनु, प्रभास इत्यादि उप्रेत रोंका जिस समय सस्कार किया गया उस समय मंत्रीने उनके मोम्यतानुसार व्यवहार किया । चक्रवर्तीके विश्वासपात्र षट्क्षण कार्यनिर्वाहक होनेपर भी सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करता था। यही उसकी विशेषता घो। ___ जयराज-यह भरतका यशस्वी सेनापति है । इसीने अपनी कुशलतरसे भरतको षट्खण्डको साधन कर दिया था । इसको भरतने मेघेश्वर नामकी आपि दे दी । यह महावीर पा। इसके परिपका वर्णन करनेवाले कर्नाटक व संसात साहित्य में कई गन्य है।