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मागधामर-यह भरतशका व्यन्तर सेनापति है। पूर्वसागरके एक वीपमें बह राज्यपालन कर रहा था। वह धीर व महा गर्मी था। क्रोधी होनेपर भी हितषियों के पपनको सुननेवाला था । भरतके आगमनको सुन पहिले यद्यपि उसने युद्धको तयारीको । फिर भी बादमें मन्त्री के समझानसे समझकर भरतचक्रवर्तीको भेंट वगैरह देकर उनकी सेवामें उपस्थित हुआ । उसके बाद कई व्यन्तर राजाओंको अशमें करफे दिया।
नमिराज-भरतश्वरका छली साला है। भरतचक्रवर्ती मुमसे संपत्तिमें बड़ा होनेपर भी बंशमें बड़ा नहीं है । इस गर्दसे, भंट व बहिन सुभद्रा देवीको देनेके समयमें भरत यदि हमारे धरमें आयेगा तो वेंगे नहीं तो नहीं देंगे, इस प्रकार उसने निश्चय किया था। फिर माता व बुद्धिसागरके समझानेसे भरतके पासमें जाफर बहुत संभ्रमसे सुभद्रादेवीका विवाह भरतके साथ किया । भरतने उसका सत्कार दिया । कविने स्त्रीपात्रोंको भी अच्छी तरह पिषित किया है ।
यमस्वतीदेवो-भरतेशको पूज्य माता थी । पुत्रके प्रति माताका अत्यधिक प्रेम व पुत्रकी माताके प्रति श्रद्धा उनमें आवारूपसे थी। मशस्वोदेवी सदा आत्मचिंतनके साथ-साथ पुत्रके प्रति हितकामना करती थी। भरतचक्रवर्तीको ९६ हजार रानियोंकी भक्ति सासूके प्रति अनुकरणीय थी। दिग्विजय प्रस्थानके समय बहुएँ और मेटेको मातुश्रीने आशीर्वादके साथ जो समयोचित उपदेश दिया वह मनन करने योग्य है। बहुओंने जो सासुके पुनः दर्शन करने पर्यंत जो कुछ नियम ग्रहण किया इसीसे उनकी भक्ति, वात्सल्य व्यक्त हो जाता है।
कुसुमाजो-भरतकी ९६ हजार स्त्रियोंमें अत्यधिक प्रीतिपात्र थी । यद्यपि भरतका प्रेम सबके लिए समान था, फिर भी उसके गुणके प्रति विशेष अनुरक्त था। भरत उसे बाहरसे नहीं बतलाता था, फिर भी कुसुमाजीने जो सरससहसाप किया था एवं भरतको अपने घर बुलाकर भोजन कराते समय जो सल्लाप किया उससे उनका प्रेम अच्छी तरह व्यक्त होता है।।
सुभद्रादेवी-- भरतकी पट्टरानी थी, वह भरतके खास मामाकी बेटी थी। वह गुणोंमें भरतचक्रवर्तीफे लिए अनुगुण थी । पट्टरानी होनेपर भी सभी रानियोंसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करतो थी। सभी रानियोंको संताप होनेपर भी इसके लिए कोई सन्तान नहीं थी। फिर भी इतर सबके सन्तानको समान निर्मायभावसे प्रेम करती थी।
इसके अलावा बहुतसे पात्र है जिनका परिषय कथाप्रसंगमें पाठकोंको हो जायगा।