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मरतेश वैभव बहिन ! पति व पत्नी परस्पर एक दूसरेके चित्तको अपहरण कर भोगें तो उसमें बड़ी शोभा है। एकांगी भोग सुख नहीं है वह तो केठका खड्ग है । स्त्री-पुरुष अंतरंग हृदयसे मिले, तो मधुर फल चखनेका आनंद आता है, नहीं तो कटु रस प्राप्त होता है। ___ कुसुमाजी ! एक दूसरेके गुणपर मुग्ध होकर जो पति-पत्नी भोग विलासमें रहते हैं उन लोगोंका सुरखमार्ग इतना सरल रहता है जैसे जलके भीतर रहनेवाले बड़े भारी पत्थरको उठानेमें कोई कठिनता नहीं होती; परन्तु केवल धन, स्वर्ण आदिके कारणसे उत्पन्न जो प्रेम है उसमें कोई शोभा नहीं है। जमीनपर पड़े हुए पत्थरको उठाने के समान उनका मार्ग भी कठिन है।
बहिन कुसुमाजी ! तुम्हारे पति ब तुम लोगोंका रूप समान है। वय भी योग्य है । गुणमुणभी समान है। इन सब बातोंकी जोड़ी तुम लोगोंको प्राप्त हो गई है, इसीलिये पति-पलियोंमें इतना प्रेम है। दांपत्यजीवनकी सर्व सामग्री अविकलरूपसे तुम लोगोंको प्राप्त है। ___ सम्राट्ने रूपसे तुम लोगोंको जीत लिया । सरसकलापोंसे तुम लोगोंके मनको प्रसन्न किया, वह राजाके रूपमें कामदेव हैं। इसलिए उसने तुम लोगोंका सर्वापहरण किया है।
बहिन ! मुझे मालम होता है कि सभी रानियों में से तुमपर सम्राटका अधिक प्रेम होगा या तुम्हारा प्रेम उसपर अधिक होगा। अन्यथा इस प्रकार चक्रवर्तीकी सुन्दरता या अंगप्रत्यंगोंके वर्णन करनेकी चतुरता तुममें कहाँसे आ सकती है।
जहाँ मन प्रसन्न हो जाता है वहीं कार्य भी अच्छा होता है और तदनुकूल वचनकी भी प्रवृति हो जाती है। इसलिए हे सत्सतिकुलमणि ! तुमने अपने पसंदके पतिकी प्रशंसा की यह उचित हुआ।
तुमने क्या कहा । तुम्हारे पतिका प्रेम ही ऐसा है जो वह तुमसे बुलाये बिना नहीं रह सकता । ऐसा कौन स्त्री होगी, जो पतिसे प्राप्त आनन्दरसका वर्णन नहीं करेगी? अपने पति के कृत्यपर किसे हर्ष न होगा? ___ कुसुमाजी!लोकमें दुःखी पुरुषोंके, दुःखी स्त्रियोंके, निष्ठुर पुरुषोंके, निष्ठुर स्त्रियोंके भी उदाहरण रात्रिदिन हमारे सामने आते रहते हैं। परन्तु शिष्ट पुरुषोंका व शिष्ट स्त्रियोंका वृत्त सुनना दुर्लभ ही है। वैसे स्त्री-पुरुष हमें देखनेको भी नहीं मिलते।