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भरतेश वैभव हमारे राजा कामदेवको भी घबराहट पैदा कर सकते हैं, और अपनी अंगकांतिसे हम लोगोंको जीतते हैं। अंगसौंदर्यसे स्त्रियोंको जीतना चाहिए एवं समरमें खड्गकी और स्त्रियोंके समरमें पुष्पोंके खड्गकी आवश्यकता है, और सोनेके लिए अग्निकी आवश्यकता है । प्रिय अमृतवाचक ! सुनो, पतिराजके स्पर्श होते ही हम लोग सुखसागर में मग्न होती हैं। बोलना नहीं चाहिये, तथापि बोल देती हूँ। हमलोगोंके साथ सरसालाप कर हमें हक्का-बक्का कर देते हैं । यह तो जब रात-दिन हमारे साथ रहते हैं तो वह समय क्षणभरके ममान मालम होता है, परन्तु जब वियूक्त होते हैं तो युगके समान मालम होता है । शरीरमें चुंबन ही मधुर है, ऐसा कहते हैं, परन्तु पक्षी ! तुम आश्चर्य करोगे, पतिदेवका सारा शरीर ही मधुर है, मुझसे नाराज न होना । नासिकाका श्वासोच्छवाम सुगन्ध है ऐसा लोग कहते हैं, परन्तु हमारे राजाके सर्व अंग सहज दिव्ययन्धसे युक्त हैं, उसका मैं क्या वर्णन करू ?
प्रत्येक अंग-प्रत्यंगोंका वर्णन करने के पश्चात् बह कहने लगी कि अमृतवाचक ! ऐसा मत कहो कि 'मरतेश मेरे पति हैं। इसलिए प्रेमके वश होकर मैंने उनकी प्रशंसा की है। परन्तु तनिक तुम हो विचार करो कि जिनके शरीरमें मलमूत्र नहीं है, ऐसे पवित्र शरीरवाले चक्रवर्तीका सौंदर्य किस प्रकारका होगा? उसका वर्णन मुझसे नहीं हो सकता है।
सम्राट्को देखकर यह किंकर्तव्यविमूढ हो गई, इसलिये ही इसने चक्रवर्तीका इस प्रकार वर्णन किया है ऐसा मत कहो । वे तो प्रथम तीर्थकरके प्रथम पुत्र हैं। उनका पूर्णरूपसे वर्णन करने में क्या मैं समर्थ हूँ? वे सब मनुष्योंके स्वामी हैं । व्यंतरोंके अधिपति हैं। विद्वानोंके राजा है । इस प्रकारकी ख्याति लोकमें भरतेश्वरकी है। उनका वर्णन कौन कर सकता है ? सब राजाओंके वह राजा हैं, बुद्धिमानोंके समूहके दे स्वामी हैं। तीन लोकमें प्रशंसाके योग्य हमारे पतिदेव हैं। पुष्पबाणसे रहित यह कामदेव है। कलंकरहित यह पूर्णचन्द्र है । भर जवानीसे युक्त युवतियोंकी दृष्टि में आनन्दपूर्ण पर्व है । शुकराज सुनो ! यह हमारा पतिदेव है।
उनमें जो गुण है, उनके अन्तको पाकर वर्णन करने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ। अमृतवाचक ! यह तो मैंने केवल उनके गुणोंकी सूचना मात्र तुम्हें दी है, ऐसा तुम समझो।