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भरतेश वैभव
भनत कांतिगंगाके ऊपर दो पतियाँ लिस प्रकार खड़ी हों उस प्रकार राजाके पादके ऊपरको दी जंघायें शोभाको प्राप्त हो रही हैं।
इसी प्रकार चक्रवर्तीके पाद, अंगुलियां और नखकी कांति बहुत मुन्दरतासे शोभित हो रही हैं।
राजाके हस्ततल और पादतलमें हल, कुलिशांकुश, चक्र, चामर, कलग, दर्पण, चाप, गोधूम, कमल आदि अनेक शुभ लक्षणोंसे लक्षित रेखाय शोभाको प्राप्त हो रही हैं। इसके अलावा शरीरमें यत्र-तत्र शुभ लक्षणोंसे युक्त तिल, सुप्रदिक्षणसे युक्त भंवर नेत्रको ललाई, एवं रोम संकुल आदि शोभाको प्राप्त हो रहे हैं।
छह अंगुल प्रमाणक मध्यप्रदेश, चार अंगुल प्रमाण कण्ठ, आजानुबाहु एवं दीर्घकेश पक्षी ! हमारे पतिदेवकी शोभामें अद्वितीय हैं ।
मुन्दर नासिका, ललाट, जंघा आदि तो भद्र लक्षणोंसे युक्त हैं। इस प्रकार पतिदेवके प्रत्येक अंग शुभलक्षणोंसे युक्त हैं।
हंसमुख, विशाल नाक, दीर्घनेत्र, काली मूंछे, कांतिपूर्ण ओठ, आदिके द्वारा हमारे राजा दुनियाको आकर्षित करते हुए शोभाको प्राप्त हो रहे हैं । शुकराज ! क्या कहूँ, पतिदेवके शरीरके पिछले भाग, अगले भाग आदि कहीं भी कोई प्रकारकी त्रुटि नहीं है, मर्य प्रदेश उत्तम लक्षणोंसे संयुक्त हैं । कहीं भी किसी प्रकारको न्यूनता नहीं है । विशेष क्या कहूँ ! किसी सुवर्ण की पुतलीको अच्छी तरह घिसकर धोकर रखनपर उसमें जान आ गई हो इस प्रकार हमारे पतिदेव चमक-दमकसे दिखते हैं, एवं हम लोगोंके अन्तरंगको आकर्षण करते हैं। क्या वह सुगंधद्रव्य से बना हुआ पुरुष तो नहीं अथवा चम्पापुष्पके दलसे बना हुआ पुरुष तो नहीं अथवा शीतल वायुके द्वारा बना हुआ पुरुष तो नहीं । इस प्रकार स्त्रियोंके हृदयको आनन्दित करते हैं । शुकराज ! वस्त्र, आभरण, रीति-नीति, बोल-चाल व सरस व्यवहारसे बार-बार स्त्रियोंके अन्तरंगको इस प्रकार आकर्षण करते हैं कि जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकती। हे अमृतवाचक ! बोलो हमारे पतिदेवका सौन्दर्य, हँसना, बोलना एवं शृङ्गारका सम्मिलन आदि तुम्हारे कामदेवको भी नसीब हो सकते हैं ? अपने सौन्दर्यके द्वारा जब स्त्रियोंको ये आकर्षित कर लेते हैं, तब तुम्हारे कामदेवको स्त्रियोंको जीतनेका कोरा अभिः मान क्यों?