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________________ भरतेश वैभव ५७ स्कृत करते हैं । वे दोनों आजानुबाहु शृङ्गार और वीर रससे शोभाको प्राप्त हो रहे हैं । कामदेव पंचबाण कहलाता है, क्योंकि पंचबाणोंको वह धारण करता है । परन्तु हमारे राजा तो उससे दुगुने सुन्दर हैं, उसी बातको सूचित करनेके लिए वे हस्तमें दस अंगुलीरूपी बाणोंको धारण करते हैं । इसकी सुन्दर गुलियों को प्राप्त हो रही हैं । उनके करतल अरुण वर्ण से युक्त है, उसमें भी नखकी श्वेतकांति और अंगूठियोंके रत्नकी कांति जब प्रतिबिंबित होकर पड़ती है तो वे दोनों बाहु अनेक वर्णके द्वारा मिश्रित कमलनालके समान मालूम होते हैं । शुकराज ! हमारे राजा कंठमें जो हार धारण करते हैं उसमें लगा हुआ रत्नपदक तो ऐसा मालूम हो रहा है कि शायद लावण्य समुद्रके बीच कोई रत्नदीपक हो । हे पक्षि ! हमारे राजाकी कुक्षि जीवरक्षाके कोमल पतके समान सुन्दर मालूम होती है । स्त्रियोंके नेत्ररूपी मछलियोंके बिहार करने योग्य शृङ्गार-तटाकके समान हमारे राजाकी नाभि है, शुकराज ! इसे किसीसे नहीं कहना | पक्षी ! छिपानेकी क्या बात है । एक दफे हमारे राजाकी सुन्दर कुक्षिकी लोमराशिको चींटियों का समूह समझकर मैंने हायसे हटानेका प्रयत्न किया। राजा मेरी कृतिपर हँसे । मैं लज्जित हुई । विजयार्ध पर्वत के दोनों ओरके छह खंडोंके हमारे राजा अधिपति होंगे इस बातको सूत्रित करती हुई कंठकी तीन और कुक्षोकी तीन रेखायें शोभाको प्राप्त हो रही हैं। शत्रुओंको हमारे राजा पीट नहीं दिखा सकते हैं, पीठ में पड़ी हुई स्त्रियोंकी ओर भरतेशकी आँखें नहीं जा सकतीं, इस बातको सूचित करते हुए पतिदेवका पृष्ठभाग शृङ्गार a वीरता शोभाको प्राप्त हो रहा है। पक्षी ! दूसरोंको नहीं कहना । हमारे राजाके मध्य प्रदेशको देखनेपर ऐसा मालूम होता है कि हाथी के कुंभके ऊपर कोई वालसिंह खड़ा हो । हमारे राजाके जंघाओंका स्पर्श भी जिन स्त्रियोंको हो उनकी थकावट सब दूर हो जाती है । कदली भी उसके बराबरी नहीं कर सकती है। शुकराज ! हमारे पतिदेवके सौंदर्यको अच्छी तरह समझ लो ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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