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भरतेश वैभव
मुख फेरे उस तरफ टपकती रहती है। विशाल ललाटमें कस्तूरीका तिलक बहुत अधिक शोभाको प्राप्त हो रहा है ।
हे शुकराज ! कामदेवको अपने बाणके द्वारा स्त्रियोंका वश करनेका कष्ट क्यों ? जावो, उससे कहो कि हमारे की सेवा करो, काम हो जायेगा ।
भरतेश्वरके भृकुटियों
हे पक्षी ? जिस प्रकार चांदनी के स्पर्शमात्रसे चन्द्रकांत शिला पानी छोड़ती है, उसी प्रकार हमारे राजाकी आँखों के प्रकाशके लगते ही स्त्रियोंका अन्तरंग पिघलता है । पतिदेव के सुगन्ध श्वासोच्छ्वासके वशीभूत होकर जो भ्रमर आकर गुंजार करते हैं, उसे देखनेपर अपने सुगन्धसे भ्रमको आकर्षित करनेवाले चम्पा पुष्पका भी कोई महत्व नहीं है ।
पतिदेवकी गाल दर्पण के समान एक रही है, पतिदेवके कानमें जो मोती के कुण्डल शोभित हो रहे हैं, उनको देखनेपर मालूम होता है कि शायद प्रिय स्त्रियां उनके अन्तरंगको इच्छाको कान में कहते समय लगा हुआ वह हर्षचिह्न है। नेत्रकान्ति आभरणोंकी ज्योति, जब उनके कपोलपर पड़ती है, मालूम होता है कि आकाशमें गर्जनाके साथ बिजली चमक रही हो ।
यौवनावस्था पतिदेवके शरीर में ओतप्रोत भरी हुई होनेसे बाहर भी उमड़ रही हो इस दृश्यको उनकी सुन्दर मूंछें बता रही हैं ।
मकरंदसे युक्त कमल सूर्यके उदयमें जिस प्रकार प्रफुल्लित होता है, हे शुकराज ! हमारे पतिदेव के मुँह खोलनेपर कर्पूर बाटिकाकी शोभा है । पतिराजकी दंतपंक्ति मोतीकी मालाके समान शोभाको प्राप्त हो रही है । प्रियपक्षी ! सुनो, हमारे राजा जब बोलने के लिए मुँह खोलते हैं तो जीभ और ओठका हलन चलन जामुनके बीच में छिपे हुए कल्पवृक्षके पत्ते के समान मालूम होता है ।
काँच या अक्की बाटली में उतरनेवाले कुंकुम रमके समान ताम्बूल रस गलेसे नीचे उतरते समय मालूम होता है तो अपने पति के उस सुन्दर कण्ठका मैं क्या वर्णन करूँ ?
शुकराज ! हमारे राजाकी प्रिय स्त्रियाँ दोनों तरफसे खड़ी होकर उनके केश पाशोंके बल से झूला झूलती हैं तो उनके केश समूहोंके बलका मैं क्या वर्णन करूँ । हमारे राजाके दोनों बाहु तो मोहिनियोंका मोहपाश है, सुवर्ण वर्ण से युक्त राहुके समान शत्रुचन्द्रमाको भी तिर