________________
भरतेश वैभव कुसुमाजी रानीने जो अमृतवाचक तोतेके साथ विनोदवार्ता की थी उसे एक चरित्रका रूप देकर वहाँ वर्णन किया जायेगा। ___कुसुमाजी कहती है "हे अमृतवाचक ! सुनो, भरतचक्रेश्वरने सबको मोहित करनेवाले इस सुन्दर रूपको किस पुण्यसे प्राप्त किया ? पूर्वमें इसके लिए उन्होंने कौनसे व्रतका आचरण किया होगा? इस तारुण्यपूर्ण अपूर्व सौंदर्यको पाकर स्त्रियोंके मध्य रहनेपर भी अपने हृदयको न बताकर चलने वाली गम्भीरता उनको किससे प्राप्त हुई ? लोकमें यौवन, तथा सम्पत्तिको पाना कठिन नहीं है, परन्तु उसके साथ विनयादिक सद्गुणोंको प्राप्त करना कठिन है ।
जमे आकाशमें रहनेवाला एक ही सूर्य जल भरे हुए अनेक घड़ोंमें प्रतिबिंबित होता है, उसी प्रकार यह एक ही भरतेश अनेक स्त्रियों के हृदयमें प्रतिबिंबित होते हैं।
जिस जंगल में उत्तम तपोधन रहते हैं वहाँ क्रूर मृग भी अपने परस्परके वैरविरोधको छोड़कर रहते हैं। उसी प्रकार राजर्षि भरत जहाँ रहते हैं, वहाँपर रहनेवाली स्त्रियाँ मत्सरभावको छोड़कर रहती है, यह आश्चर्य की बात है।
हम लोगोंके मातृगृहको भुलाकर रात-दिन अनेक प्रकारके मिष्ट व्यवहारोंसे हम लोगोंको आनन्द उत्पन्न करनेवाला साहस उनमें कहाँसे आया? लोकमें एक व्यक्तिको एक बार देखकर पुनः देखनेपर वह पहिले के समान नहीं रहता है। वह पुराना-सा हो जाता है। परन्तु आश्चर्य है कि यह भरतेश्वर नित्य प्रति नये-नयेके समान ही मालूम होते हैं। ____अमृतवाचक ! षट्खण्डके राज्यको पालन करनेवाला पतिदेवका मैं मुकुटसे लेकर चरणोंतक वर्णन करूँगी। तुम सुनो। यह कहकर कुसुमजीने सम्राट् भरतके प्रत्येक अंग-प्रत्यंगोंका बहुत सुन्दरतासे वर्णन किया । जिस समय वह चक्रवर्तीका वर्णन कर रही थी उस समय उसके हृदयसे पतिदेवके प्रति भक्तिरस टपक रहा था। __ हे शुकराज ! मुकुटवर्धन जो अनेक राजा हैं उनको पालन करनेवाले हमारे प्राणनायक हैं उनकी सर्वांग शोभाको मुकुटसे लेकर अंगूठे सक वर्णन करूंगी, जिसे ध्यान देकर सूनो!
हे शुकराज ! पुरुषप्रमाणके केशको बाँधकर पर्याप्त शृङ्गार हमारे राणा पाते हैं । उनके मुखकी हर्षमुद्रा व सुन्दरता जिस तरफ भी राजा