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________________ भरतेश वैभव स्त्रियोंकी अनेक जाति होती हैं। उनमें बाला बोलना नहीं जानती है। मुग्धा आगे नहीं आती है या दूसरोंके सामने मर्ख बन जाती है। मध्यमाको आलस्य नहीं रहता है। लोला चंचल रहती है। वह सार रहित है । इसी प्रकार विदग्धा तंत्रिणी आदि कई जाति स्त्रियोंकी है। इन सबके मर्मको राजन् ! तुम जानते ही हो। ___ "स्वामिन् ! कुसुमाजीके हाथको पकड़कर आपने ठहराया सो अच्छा हुआ, परन्तु वह अब अकेली आपके पास बैठी रहने में लज्जित होती है, इसलिये उसे अपनी सहोदरियोंके पास जाकर बैठनेकी आज्ञा दीजिये' पण्डिताने कहा । भरतेश कहने लगे कि प्रिये कूसुमाजी! तु मेरे पास बैठने में लज्जित होती है ? नदि हाँ पायो, आनी बहिनोंके साथ सदाकी भांति बैठी रहो। इस प्रकार आज्ञा देनेपर वह वहाँसे उठी और अन्य रानियाँ जहाँपर बैठी थीं वहाँ जाकर बैठ गई । अब काठ्यको पढ़ो, इस प्रकार सम्राट्ने आज्ञा दी। तब एक कन्या ताडपत्रके ग्रन्थको खोलकर पढ़ने लगी, जिसमें निम्नलिखित काव्य लिखा हुआ था। मंगलाचरम सिंहके ऊपर जो सुन्दर कमल रखा हुआ है उसको भी स्पर्श न करके जो निराधार खड़े हैं, उन आदिनाथ स्वामीके पादकमलोंको नमस्कार हो। ___जिनके शरीरका भार नहीं है, ज्ञान ही जिनका शरीर है, जो सनुवातवलय के बीचमें स्थित सिद्धशिलामें विराजमान हैं, उन सिद्धपरमेष्ठियोंके पादकमलोंको मैं हृदयसे स्मरण करती हूँ । तीन कम नव करोड़ मुनीश्वरोंको मैं भावशुद्धिपूर्वक नमस्कार करती हूँ । तथैव शारदादेवीको भी प्रणाम करती हूँ और भेदाभेदात्मक रत्नत्रयकी भी मैं सदा भावना करती हूँ | सम्राट् भरतके हृदयमें जो प्रकाशपुंज परमात्मा है उसे शुभचित्त: से मैं नमस्कार करती हूँ। ___ कमलको स्पर्श न कर आकाशप्रदेश में खड़े हुए अपने मामाजी ( श्वसुर ) को नमस्कार कर बहिन अमराजीकी आज्ञासे इस चरित्रको पढ़कर पतिदेवको सुनाऊँगी।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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