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भरतेश वैभव तब कुसुमाजी इस बातको सच्ची समझकर पासमें आई और कंकण लेनेके लिये उसने हाथको आगे बढ़ाई। इतनेमें हाथी जिस प्रकार अपनी हथिनीको धरता है, उसी प्रकार भरतेशने उसके हाथको पकड़ लिया।
प्रिये ! तू किसे ठग रही है ? मुझे अज्ञात रखकर तुझे आज बत किमने दिया है ? रहने दो । यहाँ बैठी रहो ! तुझे मेरी शपथ है। यह कहकर भरतेशने कूसमाजीको अपने पासमें बिठा लिया।।
तुमने जो चरित्र मनोविनोदार्थ तोतेको कहा उसे सुनकर तुम्हारी बहिनोंको हर्ष हुआ, इसीलिए उन्होंने उसकी रचना की । क्या अब मैं भी उसे सुनकर मनोविनोद न करू ? ऐमे आनंदके ममयपर क्यों उठकर जाती हो ? सोचो तो मही।
हाँ, मैं तुम्हारे उठकर जानेका कारण ममझ गया हूँ। तुमने जो एकांतमें तोनेके माथ बातचीत की थी, वह बाहर प्रगट हो गई है, इस लज्जामे उठकर जा रही हो । अपने हृदयकी बात को दूसरोंको मालूम न होने देना कुलस्त्रियोंका धर्म है। परन्तु यह मोचो कि यहाँपर दूसरे कौन हैं ? यहाँ तो मव अपने ही लोग हैं। फिर तुझे इतना संकोच क्यों ? चुपचाप यहाँ बैठी रही और इस काव्यको मनो।
पुनः भरनेश्वरने पंडिनामे कहा, पंडिता ! देखा तुमने कुमुमाजीको? कुसुमके गेंदके ममान किस प्रकार उछलकर जा रही थी। 'राजन् ! देख ली, स्त्रियोंके हृदयकी वात आप मर्गखा और कौन जान मकता है ? स्वामिन् अपना गृप्त वार्तालाप मगेके सामने आया इससे उसे लज्जा हुई । यह कालीन स्त्रियोंका धर्म है। जो आपने उसे समझाया तो बहुत अच्छा हुआ ।'' पंडिताने कहा ।। ___ सम्राट् कहने लगे यह बात जाने दो ! पर यह तो देखो कि प्रतके बहाने यह मुझे किस प्रकार ठग रही थी। ___ पण्डिता कहने लगी स्वामिन् ! उसके पास जीतनेका तंत्र नहीं है । इस तंत्रसे वह तुम्हें जीत नहीं सकती है। क्या करे? वह मूढा है, इसीलिए उसने यहाँतक दूरदर्शितासे विचार नहीं किया 1 स्त्रियोंका चातुर्य ऐसा ही रहता है।
एकांतमें स्त्रियां अनेक प्रकारकी कला, कुशलताओंको प्रकट करती हैं परन्तु लोकांतमें पूछनेपर उनका सर्व चातुर्य लुप्त हो जाता है। यह स्त्रियोंका निष गुण है।