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________________ ५२ भरतेश वैभव तब विचारकुशल सम्राट भरतेशने कहा कि उस काव्यको किसने रचा है ? उसमें किसका वर्णन है ? उस नवीन कृतिका संशोधक कौन है ? दूसरोंने उस कान्यकी रचना नहीं की है और न उसमें दूसरोंका वर्णन ही है। उसका संशोधन करने के लिए अन्य पात्र नहीं हैं। हे राजन् ! यह रचना आपके महल में ही रची गई है, और उसमें आपका ही वर्णन है । उसका आप ही संशोधन करें, यही दासीकी प्रार्थना है । मलमें जो नबीन रूपसे रचना रची हुई है उसको करनेवाले कौन हैं ? रचना करनेवालोंका नाम तो बताओ। इस प्रकार मन्द हास्यके साथ महागज बोले। राजा ! हमें पानी को अपने मनकी बात एक तोतेसे कही। उसे पड़ोस में रहनेवाली मौ. सुमनाजी रानीने सुनी व चरित्रक रूपमें रचना कर दी। कल सुमनाजी रानीके महलमें लीला विनोदके लिये अमनाजी आई हुई थीं। उस समय कुसुमाजी अमृतवाचक नामक अपने तोतेके साथ बातचीत कर रही थीं। तब दोनों रानियोंने उसको जोड़कर चरित्रका रूप दे दिया। अमनाजी सुमनाजीसे कहने लगी कि कुसुमाजीने जो कुछ कहा सो बहुत अच्छा हुआ । बहिन ! तुम उसकी रचना करो, मैं उसे अच्छी तरह लिखती जाती हूँ। ऐसा तैयार हुआ काव्य है यह । राजन् ! आप इसे सुनें, ऐसा पण्डिताने कहा। भरतेशने कहा अच्छी बात ! मैं उसे सुनंगा । किसीसे उसे बाँचने के लिए कहो । तुम बैठे रहो । ऐसा कहनेपर वह पण्डिता उस पुस्तकको किसी एक स्त्रीके हाथ में देकर उसे बाँचने को कहने लगी व स्वयं वहाँ पास में बैठ गई। इतनेमें उस सभामें स्थित कुसुमाजी रानी एकदम उठी व सम्राटसे प्रार्थना कर कहने लगी कि आज दिनमें मेरा एक व्रत विधान है। मुझे अभी मंदिरमें जाना है। इसलिए मैं अब जाऊँगी ऐसा कहकर जाने लगी। इतनेमें महाराज हँसकर बोलने लगे कि "अच्छी बात ! तुम जा सकती हो, परन्तु तुम्हारे व्रतविधानकी निर्विघ्न परिपूर्णताके लिये यह सुवर्ण कंकण देता हूँ। लेती जावो, चुपचाप क्यों जाती हो। इसे ले जावो। ऐसा कहकर यों ही हाथको आगे बढ़ाया।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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