SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 727
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतेश वैभव को भूक्तिकी प्राप्ति हुई। प्रणयचन्द्र, गुणवसतक मन्त्रीने आदियकेशकी अनुमतिसे आदिनाषसे दीक्षा ली एवं तपश्चर्याकर मोक्षको चले गये। दक्षिण नागर आदि भरतेशके आठ मित्र, मंत्री व सेनापति भी दीक्षित होकर मुक्ति चले गये। वे भरतेशको छोड़कर अन्य स्थानमें कैसे रह सकते हैं ? अब फिस किसका नाम ले ? मरोधीकुमारको छोड़कर बाकी सर्व भरतेश्वरके पुत्र व भाई सबके सब मोक्षधाममैं पहुंचे। __ सम्राटके जमाताओंमें कुछ तो स्वर्ग में और कुछ तो मोदामें चले गये, और पुत्रियोंने विशिष्ट सपश्चर्याकर स्वर्गलोको पुरुषत्वको प्राप्त किया। विमलराज, कमलराज और भानुसजने मुक्तिको प्राप्त किया। शेष गांधमोंमें किसीने स्वर्ग और किसीने मोक्षको क्रमसे प्राप्त किया। देवकुलको दीक्षा नहीं है, इसलिए गंगादेव और सिंधुदेव अपनो वेजियोंके साप घरमें ही रहे। नहीं तो वे भी घरमें नहीं रह सकते थे। इसी प्रकार मामरादि ध्यंतरेनर भी शिवा कर महल में हो रहे । वे दीक्षित नहीं हो सकते थे, नहीं तो उस गुणोत्तम आविचकोशके वियोग सहन करते हुए इस भूभागमें कौन रह सकते हैं ? यह भरतेकर गुरुहंसनाथपर मुग्ध होकर चेतोरंगमें उसे देखते थे तो सागरांत पृथ्वीके प्रजानन उनको वृत्तिपर प्रसन्न थे। आत्मारामपर कौन मुग्ध नहीं होंगे ? उसे जाने दो । वायुकी सामर्थ्यसे वृद्धत्वको प्राप्त न करते हुए सदा जवानी में रहना क्या आश्चर्यकी बात नहीं है ? ९६ हजार रानियोंमें यस्किषित भी मस्सर उत्पन्न न होने देते हुए रहनेवाले विवेकीपर कौन मुग्ध नहीं होंगे ? परिग्रहोंको त्याग कर सभी मनःशुद्धिको प्राप्त करते हैं । परन्तु परिग्रहोंको ग्रहण करते हुए आत्मशुद्धि करनेवाले कौन हैं ? सम्पतिके होनेपर नोचवृत्तिसे चलनेवाले लोकमें बहुत हैं, भरतेश्वरके समान सकलेश्वयंसे सम्पन्न होकर गम्भीरतासे चलनेवाले कौन हैं ? दूरदर्शिताले विषयको जामनेका प्रकार बुद्धिमत्तासे बोलनेका क्रम, प्रजा परिवारके पालनका प्रबन्ध, आजके सुख और कलकी आत्मसिद्धिकी ओर दुष्टि, यह सब गुण भरतेश्वरमें भरे हुए थे। मित्रोंका विनय, मंत्रियोंका परामर्श, सेनापति, मागधामरादिका स्नेह, सत्कवि और विद्वानोंका समादर लोकमें बोलके समान और किसे प्राप्त हो सकते हैं ?
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy