________________
२७२
भरतेश वैभव पिताने घातियाकर्मोको नष्ट कर दूसरे ही दिन मोक्षको प्राप्त किया। परन्तु इनको घातिया कर्मोको नष्ट करनेके बाद कुछ समय विहार करना पड़ा। पिताके समान घातिथा कर्मोको तो शीघ्र नष्ट किया। परन्तु अघातिया कर्मोको दूर करनेके लिए कुछ समय अधिक लगा।
पिताने अपने आयुष्यके अवसानको जानकर दीक्षा ली थी। परन्तु इन्होंने आयुष्यको बहुत सा भाग शेष रहनेपर भी दीक्षा ली है । इसलिए आयुष्यको व्यतीत करनेके लिए गंधकुटीमें रहकर कुछ समय विहार करना पड़ा, जिससे जगत्को परमानन्द प्राप्त हुआ।
अर्ककीति और आदिराज केबलीका विहार कलिंग, काश्मीर, लाट, कर्णाट, पांचाल, सौराष्ट्र, नेपाल, मालव, हुरमुंजि, काशि, हम्मीर, बंगाल, बर्बर, सिन्धु, पल्लव, मगध, और तुर्कस्थान आदि सभी देशोंमें हुआ एवं सर्वत्र उपदेशामृतको पान कराकर सबको संतुष्ट किया।
जहाँ तहाँ भव्योंने उपस्थित होकर केवलियोंकी अर्चाकी पूजा की, यंदना की, और आत्महितको पूछमेपर दिव्यध्वनिसे आत्मसिद्धिके मार्गको निरूपणकर उनका उद्धार किया।
विशेष क्या वर्णन किया जाय ? बहुत समय तक धर्मवर्षा करते हुए दोनों के वलियोंने विहार किया एवं लोको धर्मपद्धतिका प्रकाश किया । अब आयुष्यका अन्त समीप आया तो उन्होंने समाधियोगको धारण किया।
अर्ककी ति केवलीने रौप्यपवंतसे अधातिया कर्मोको नष्ट कर मुक्ति प्राप्त किया। देवेन्द्र आया य निर्वाणपूजा कर चला गया। इसी प्रकार कुछ दिनके बाद आदिकेवलीने भी अघातिया कर्मोको नष्ट कर उसी पर्वतसे मुक्तिको प्राप्त किया। अन्तिम मंगलविधि तो प्रोक्त प्रकारसे हो की गई। वृषभनाथ हंसनाथ आदि भरतपुत्रों एवं बाहुबलिके पुत्रोंने भी जहां तहां गिरिवननदीतटोंमें तपश्चर्या कर मुक्तिको प्राप्त किया ।
अजिकाओंने घोर तपश्चर्याकर स्त्रीपर्यायको नष्ट करते हुए पुरुष होकर स्वर्ग में जन्म लिया। __आदिप्रभुके निर्वाणके बाद चक्रवर्तीकी माताओंको स्वर्गलोकी प्राप्ति हुई । भरतेशके मोक्ष आनेके बाद उनको रानियोंको भी स्वर्गलोकमें पुरुषत्वकी प्राप्ति हुई । आदिनाथके अनंतर ही कच्छ महाकच्छ योगियोंको मोक्ष की प्राप्ति हुई और भरतेशके बाद बाहुबलि नमि चिनमि ने वृषभसेन