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________________ २६४ भरतेश वेभव हुए कहने लगे कि मामाजीकी वृत्ति आश्चर्यकारक है। कितनी शोन दीक्षा ली । कर्मको जलाया कितना शोघ्र ! और साथ में मोक्षको भी कैसे जल्दी चले गये। उनके समान अक्षुण्ण महिमाको धारण करनेवाले और कौन हैं ? धन्य हैं। षट्खंडको वश करते समय मामाजीको कूछ समय लगा। परन्तु मोक्षको वश करनेके लिए तो पौने चार टिका ही लगी आश्चर्य है ! । उस दिन लीलाके साथ राज्यको जीत लिया तो आज लोलासे ही मुक्ति साम्राज्यके अधिपति बने । मामाजी सचमुचमें कालकमके भी स्वामी हैं। __ लोक सभी जयजयकार करे, इस प्रकारको अतुल कीतिको पाकर मुक्ति चले गये । इस कार्य से सबको संतोष होना चाहिये । आपलोग व्यर्थ दुःख क्यों करते हैं। संसार में स्थिर होकर कौन रहने लगे हैं। मामाजी जहाँ रहते हैं वही स्थिर स्थान है। कुछ समय विश्रांति लेकर अपन सभी मुक्ति के लिए प्रस्थान करेंगे। मामाजी गये तो क्या हुआ हमें आत्मसंवेदन ज्ञानको देकर चले गये हैं। इसलिए जमले नाही अनुकरण कर अपन भी जावें व्यर्थं दुःख क्यों करना चाहिये। इस प्रकार उन लोगोंने अर्ककीति व आदिराजको सांत्वना दी। अर्ककीर्तिने भी उत्तरमें कहा कि हमें दुःख नहीं है। थोड़ा-सा दुःख था, वह आपलोगोंके आनेपर चला गया। आपलोग बहुत दूरसे आकर थक गये हो । इसोका मुझे दुःख है । आपलोग अपने मामाके महल में वैभवसे आते थे और वैभवसे जाते ये। परन्तु आज क्षोभके साथ आकर कष्ट उठा रहे हो । मेरा भाग्य ऐसा ही है। उत्तरमें उन बहनोइयोंने कहा कि आप दोनोंके रहनेपर हमें तो मामाके समान ही आनन्द रहेगा। इसलिए आप लोग कोई चिंता मत करो। इस प्रकार कहकर ३२ हजार बंधुओंने उनके दुःख शान्त करनेका प्रयत्न किया । आदिराजको वही उनके पास छोड़कर स्वयं अकीर्ति अपनी बहनोंको देखनेके लिए महलके अन्दर चले गये । वहाँपर शोकसमुद्र उमड़ पड़ा । कनकायली रस्नावली आदि बहिनोंने अनुपात करती हुई अर्फकोतिके चरणोंमें लोटकर पूछा कि भैया ! पिताजी कहाँ है ? हमारी मातायें कहाँ है ? यह महल इस प्रकार कांतिविहीन क्यों बन गया ? भैया ! तुम सगेखे मनुमागियोंके होते हुए ऐसा होना क्या उचित है ? तुम्हारे लिए जाते समय उन्होंने क्या कहा ? हमें भूलकर वे क्यों चले गये? हाय ! हमारा दुर्दैव है । षिक्कार हो। अर्ककीर्तिका हृदय
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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