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________________ • भरतेश सा चले जानेपर भरतेश्वरके शेष सहोदरोंके पुत्र वापर श्रृंगारशून्य होकर आये | और उन्होंके समान शोकाकुलित हुए। वृषभसेनके पुत्र अनंतसेनेंद्र आदिको लेकर सभी भाई वहाँ पर आये और अपने दुःखको व्यक्त करने लगे, उनको उनके पिताबोंने केवल जन्म दिया है । परन्तु वे बाल्यकाल में ही उनको छोड़कर चले गये हैं। पीछेसे भरतेश्वरने ही उनका पालन प्रेम के साथ किया था । उनको दुःख क्यों नहीं होगा ? भरतेश्वरने अपने पुत्रोंमें व इनमें कोई भेद नहीं देखा या । अपने पुत्रोंके समान हो इनका भी पोषण किया। फिर इनको पिताके मुक्ति जानेपर शोक क्यों नहीं होगा ? वे दुःखके साथ स्त्रियोंके समान विलाप करने लगे कि हम लोगोंने पिताजीका दर्शन नहीं किया। उनको देखते तो उन्होंसे दीक्षा लिये बिना नहीं छोड़ते । वे तो हमें नागमें ही छोड़कर चले गये । पूर्वमें हम लोगोंने किसके व्रताचरणका तिरस्कार किया होगा ? किन सुखोंकी निन्दाको होगी ? इसलिए हम लोगोंको उस धीरयोगीके हाथ से दीक्षा लेनेका भाग्य नहीं मिला। तुषमाष ज्ञान प्राप्त कर पिताजी के हाथसे मनोभिलषित दीक्षा लेने के लिए हम लोगोंने क्या वृषभराज, हंसराज आदि पुत्रोंका अतुल भाग्य पाया है ! नहीं । अस्तु । अब होनपुण्य हमलोग यदि अपेक्षा करें तो वह गुरु हमें क्योंकर प्राप्त हो सकता है। हमें अब भोगकी जरूरत नहीं है। दोक्षा के लिए हम जायेंगे। इस प्रकार कहते हुए उन्होंने बड़े भाईसे प्रार्थना की। अकीर्तिने कुछ दिन रुकने के लिए कहा परन्तु उन्होंने मंजूर नहीं किथा । तब अर्ककी तिने कहा कि अच्छा ! जाओ । हमें भी अब विशेष आशा नहीं रही है, हम भी तुम्हारे पोछे-पीछे आयेंगे। जाते हुए उन भाइयोंने अपने पुत्रोंको योग्यरूपसे पालन करनेके लिए हाथ जोड़कर कहा एवं सब अलग-अलग दिशा में दीक्षा के लिए चले गये, जैसे पखेरू अलगअलग दिशाओं में उड़ जाते हों । इन सहोदरोंके चले जानेपर अर्ककोतिकी बहिनों के साथ अर्ककी तिके ३२ हजार बहनोई इस दुःखके समय सांत्वना देने के लिए आये। कनकराज, कांतिराज आदि बहनोई शृङ्गारशून्य होकर अर्ककोर्तिके पास आये, धर बहिनें अन्दर महलमें चली गई । अकंकीति उनको देखकर उठा तो उसी समय उन लोगोंने भी दुःखके साथ अनुपात करते हुए आलिंगन दिया। एवं सभी बैठ गये । अर्ककीति आदिराजको बेलकर सांत्वना देते
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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