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भरतेश वैभव पुनः अर्ककोतिने कहा कि भाई ! इसमें वादको क्या जरूरत है। आदिराज तुम हम मिलकर योग्य विचार करेंगे। उठो, तब वे कुमार उठकर खड़े हुए।
पुनः अर्ककीतिने कहा कि आप लोगोंने विचार जो किया है वह उत्तम है। उसे करनेमें कोई हर्ज नहीं है। पिताजीके चले जानेपर राज्यवैभवको भोगना उचित नहीं है। दीक्षा लेना ही उचित है । तथापि एक विचार सुन लो। पिताजीके वियोगसे सभी प्रजा परिवार दुःखसागरमें मग्न हैं। इसलिए कमसे कम एक वर्ष अपन रहकर सबका दुःख शांत करें। फिर तुम हम सभी मिरकर दीक्षा लेने न तपश्चर्या, माह मे ना है। तबतक ठहरना चाहिये । साथमें अकीतिने आदिराजकी ओर संकेत करते हुए कहा कि आदिराज! इस सम्बन्धमें तुम क्या कहते हो। तब मादिराजने भी उन भाइयोंसे कहा कि भैया ठीक तो कह रहे हैं । केवल वर्षकी बात है । अधिक नहीं इसलिए तुमको मान लेना चाहिये ।
ज्येष्ठ सहोदरोंके वचनको सुनकर महाबल राजाने कहा कि भैया ! मनुष्यको क्षणमें एक परिणाम उत्पन्न होता है । चित्त चंचल है । जीवको जो विरक्ति आज जागृत हुई है वह यदि विलीन हो गई तो फिर बुलानेपर भी नहीं आ सकती है सबको सन्तुष्ट कर आपलोग सावकाश दोक्षाके लिए आवें | हमारे निवेदनको स्वीकृतकर आज ही हमें भेजना चाहिए । इस प्रकार कहते हुए पुनः चरणोंमें मस्तक रखा। आपको पिताजीको शपथ है। आप दोनोंके चरणोंका शपथ है। हमलोग तो अब यहाँ नहीं रहेंगे। हमें सन्तोषफे साथ भेजिये । ___ अकीति राजाने अगत्या सम्मति दे दी। भाई ! आपलोग आगे जाओ। हम लोग पीछेसे आयेंगे। तोनों भाइयोंको इस वचनको सुनकर परम हर्ष हुआ। कहने लो कि भैया ! हम जाते हैं पोदनपुरमें हमारे कुमार हैं । उनको अपने पुत्रों के समान संरक्षण करना है। अब उनके मन में कोई संकल्प-विकल्प नहीं रहा। ____ अकोतिने कहा कि आज हमारी पंक्तिमें बैठकर भोजन करो । कल चले जाना । उत्तरमें महाबल राजाने कहा कि भाई ! पिताजीके महलको देखनेपर शोकोद्रेक होता है । इसलिए हम यहां भोजनके लिए नहीं ठहरेंगे। पुनश्च दोनों भाइयोंके चरणोंको नमस्कार कर वे तीनों वहाँसे रवाना हुए । अर्कोति आदिराजके नेत्रों में अश्रुधारा बह रही है । परन्तु वे तीनों सहोदर हंसते हुए आनन्दसे फूलकर जा रहे हैं । संसार विचित्र है। उनके