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भरतेश वैभव
हे सिद्धात्मन् ! आप विस्मयस्वरूप हैं, विचित्रसामयंसे युक्त हैं । आकस्मिक महिमा सम्पन्न हैं । महेश ! अस्माराध्य ! दशदिशारश्मि ! हे निरंजनसिद्ध ! मुझे सम्मति प्रदान करो । इसी भावनाका फल है कि उन्होंने अलौकिक परमानंदमय पदको प्राप्त किया ।
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सिंधि
मोक्षविजयनाम चतुर्थ कल्याणं सम्पूर्णम्
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