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________________ २४८ भरतेश बैजन कुटीका रचना की गई । मनुज, नाग आमरोंने उनकी पूजा की । यहाँपर बड़ी भारी प्रभावना हो रही है। इधर भरत सर्वज्ञ जिस शिलातलसे मुक्तिको प्राप्त हुए उसके पास देवेन्द्रने होमविधान किया एवं आनन्दसे नर्तन कर रहा था और उसे अर्केकोति और आदिराज भी देखकर आनन्दित हो रहे हैं। धरणेंद्र प्रशंसा कर रहा था कि कहीं तो षट्खंडका भार और कहाँ ९६ हजार रानियोंका आनन्दपूर्ण खेल, कहाँ तो क्षणमात्रमें केवल्य प्राप्त करनेका सामर्थ्य ! धन्य है ? अपने आपको स्वयं ही गुरु बनकर दीक्षा ली। और अपनी आत्माको स्वयं ही देखकर शरीरका नाश किया । एवं 1 अमृत पदको प्राप्त किया । शाबाश ! क्या शरीरको कोई कष्ट दिया ? नहीं, भिक्षा के लिए किसीके सामने हाथ पसारा ? नहीं ? चक्रवर्तीके वैभवमें ही मोक्षासाम्राज्यको प्राप्त किया । विशेष क्या ? झूला झूलने के समान मुक्ति स्थानमें जा विराजे । धन्य है ! सिंहासन से उतरकर आये तो इधर कमलासनपर विराजमान हुए । रत्नमय गन्धकुटी थी तो उसका भी परित्याग कर अमृतलोकमें पहुंचे । लोकविजयी भरतेश्वरको नमोस्तु भ्रमण कर आहार नहीं लिया। तपोमुद्राको प्राप्त कर कुछ समय देश में बिहार भी नहीं किया। वैभवमें ये और वैभवमें ही पहुँचकर मुक्तिसाम्राज्य के अधिपति बने, आश्चर्य है ! इस प्रकार धरणेंद्र आनन्दले प्रशंसा कर रहा था कि देवेन्द्रने, विनोदसे कहा कि अब बस करो ! कलियुग के रत्नाकर सिद्ध के लिए भी कुछ रहने दो। वह भी भरतेश्वरको प्रशंसा करेगा | धरणेंद्रने कहा कि देवेन्द्र! चक्रवर्तीकी महत्ताको वर्णन करनेकी सामर्थ्य न मुझमें है और न रत्नाकर सिद्धमें है और न तुममें है । वह तो एक अलौकिक विभूति है । देवेन्द्रने कहा कि तुम सच कहते हो । गुणमें मत्सरकी क्या जरूरत है। सम्राट् के समान वैभवके बहुमारको धारण कर क्षण में मुक्ति जानेवाले कौन हैं ? उनके समान ही हमें भी मोक्षसाम्राज्य शीघ्र प्राप्त होवे । इस भावनासे देवेन्द्र ने होम भस्मको मस्तकपर लगाया एवं उसी प्रकार धरणेंद्रने भो आनंदसे उस होम भस्मको धारण किया । वहाँपर उपस्थित अर्ककोति आदि सभीने भक्तिसे होम-भस्मकी धारण किया । यहाँपर भरतेश्वरका मोक्षा कल्याण हुआ । सबको आनन्द हुआ । शरीरके अदृश्य होते हो गन्धकुटी भो अश्व हो गई। मुनिगण व
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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