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________________ भरतेश वैभव २४७ तथापि अब तो अन्तिम शरीरसे कुछ कम आकारमें वह मोक्षमें विराजमान है। भरतेश्वर नामाभिधान तो शरीरके साथ ही चला गया है। अब तो वह परमात्मा सिद्धोंके समूहमें परमानन्दमें मग्न होकर विराजमान है, वहाँसे अब वह किसी भी हालतमें लौट नहीं सकता है । वह परम सुखका मार्ग है। परमात्मा भरतयोगीको जिस समय कैवल्यधामकी प्राप्ति हुई उस समय आश्चर्य की बात है कि भरतेश्वरके पांच पुत्रोंने भी घातिया कोको नष्ट कर केवलज्ञानको प्राप्त किया। हंसयोगी, निरंजनसिद्धमुनि, महाशुयति, रस्नमुनि और संसुखि मुनिको केवलशान एक ही साथ प्राप्त हुआ। उन पांचोंका जन्म भी एक साथ हुआ था । और अब केवलज्ञान भी उनको एक साथ हुआ । इसलिए भरसेश्वरके मुक्ति जानेका दुःख उनको नहों हो सका। भरतेश्वरने पंचमगतिको प्राप्त किया तो पांच पुत्रोंने घातिया कर्मों का पंचत्व (मरण) को प्राप्त कराया । लोकमें सम्राट्की महिमा अपार है। श्रीमाला, वनमाला, मणिदेवी, हेमाजो और गुणमाला साध्वियोंने परम आनन्दको प्राप्त किया । ये तो उन पुत्रोंकी मातायें हैं, उनको हर्ष होना साहजिक है। परन्तु शेष साध्वियोंको भी आनन्द हुआ। सबोंने उन पुत्रों की प्रशंसा को, कीर्ति दस दिशाओंमें फैल गई। पिताश्री भरतेश्वर मुक्ति गये इस बातका दुःख अकोति व यादिराज को नहीं हुआ, क्योंकि पांच सहोदरोंने एक साथ केवलज्ञान प्राप्त किया इस मानन्दमें वे मग्न थे। उसी समय कुछ राजाओंको, कुछ कुमारोंको, कुछ सम्राट्के मित्रोंको अवधिज्ञान आदि सम्पत्तियोंकी प्राप्ति हुई। इसमें आश्चर्य क्या है ? भरत चक्रवर्तीकी संगतिमें रहनेवालोंकी यह कोई बड़ी बात नहीं है। ___ भागधामरको परम सन्तोष हुआ। सन्तोषके भरमें वह कहने लगा कि मेरे स्वामीने इस लोकमें रहते हुए सबको सन्तुष्ट किया और यहाँसे जाते हुए भी सबको आनन्दित किया । धन्य है ! इसी प्रकार बरतनदेव, विजयाई, हिमवत आदि देव भी सम्राट्की प्रशंसा कर रहे थे। गंगादेव और सिंधुदेव भी बार-बार आनन्दसे भरतेश्वरका स्मरण कर रहे थे। उसी समय जिन पाच पुत्रोंको केवलज्ञानको सत्पत्ति हुई उनको गंध
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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