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________________ २२८ भरतेश वैभव यह बात मैं हंसनाथके साक्षीपूर्वक कहता हूँ। बाकी कुमारोंने भी सामने आकर निश्चल चित्तसे कहा कि स्वामिन् ! हम तो आपके पास ही रहेंगे ! यहाँ नहीं रह सकते हैं। सम्राट् भरतने सोचा कि सबको समझाकर सांत्वना देने के लिए मेरे पास समय नहीं है, अब जो होगा सो होगा । इस प्रकार सिंहासनसे उठकर खड़े हुए। अकीर्तिकुमारको हाथ पकड़कर सिंहासनपर बैठा दिया ! अपने कोरीटको उतारकर उसके मस्तक पर रखा 1 उपस्थित सर्व जनताने जयजयकार किया । कंठहारको धारण कराकर नवीन पट्टको बांध दिया एवं घोषित किया कि तुम ही अब इस राज्यके अधिपति हो । तिलक लगाकर उसके पट्टाभिषेकका कार्य पूर्ण किया। पास ही स्थित छोटेसे सिंहासनपर आदिराजको बैठा दिया। एवं रत्नहार पहनाकर तिलक लगाया, घोषित किया कि यह युवराज हैं। अन्तमें कहा कि बेटा! प्रजा है, परिवार है, देश है, राज्य है। सबके मनको जानकर उनको प्रसन्न करके राज्यका पालन करना यह तम्हारा कर्तव्य है। अब मुझे बोलनेके लिए समय नहीं है । इस प्रकार सर्व पुत्रोंको संकेत किया। वे कुमार आंसू बहा रहे थे। इधर सम्राट्ने राजसमूहको देखकर कहा कि आप लोग अन्न मेरी चिन्ता न करें। अब इन कुमारोंके प्रति ध्यान देकर उनके अनुकूल होकर रहें। इस प्रकार सबके प्रति एकदम इशारा किया। दुनियाका झंझट दूर हो गया । अब भरतेशको किसी बातकी चिन्ता नहीं रही । अपनी स्त्रियां, मंत्री, मित्र वगैरह किसीका ध्यान नहीं रहा परमात्माका स्मरण करते हुए यह उसी क्षण आगे बढ़ गया। अर्ककीर्ति आदिराज आदि कुमार आगे बढ़कर उनके चरणों में पड़े और आँसू बहाते हुए उनको आगे बढ़नेसे रोकने लगे । पितृवियोगको कौन सहन कर सकते हैं ? क्या भरतराजेन्द्रने उन रोते हुए पुत्रोंकी ओर देखा? नहीं ! अब तो उनके हृदयमें मोहका अंश बिलकुल नहीं है। उन पुत्रोंको रोते हुए ही. छोड़कर मदोन्मत्त हाथीके समान आनन्दके साथ तपोधनकी ओर बढ़े। दरबारमें स्थित राजा प्रजा और परिवार तो उन्होंके साथ आगे बढ़कर आये एवं सम्राटके सामने पालको लाकर रख दी । भरतेश आत्मलीलाके साथ उसपर आरूढ़ हुए। सम्राट् दीक्षावनको ओर चले गये, यह मालूम होते हो अंतःपुरमें एकदम हाहाकार मच गया । धूपमें पड़े कोमल पत्तों के समान रनिवासमें
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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