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________________ भरतेश वैभव राज्य मूर्खके लिए कष्टदायक है, बुद्धिमान विवेकीके लिए कष्ट नहीं है इष्ट ही हैं। इसलिए इस पट्ट के लिए सम्मति दो देरी मत करो। इस प्रकार सम्राट्ने कहा। उत्तरमें कुमारने निर्भीक होकर कहा कि स्वामिन् ! आप तो मोक्ष राज्यको चाहते हैं ? और हमें तो इस भौतिक राज्यमें रहनेको अनुमति दे रहे हैं, इसे हम कैसे मान सकते हैं। इसलिए मुझे भी दीक्षा हो शरण है, में भी आपके साथ ही आता हूँ। पुनः सम्राट्ने कहा कि बेटा ! मेरे पिताजीने मुझे राज्य देकर दोक्षा लो। और मैं तुमको राज्य देकर दीक्षित होऊ यहो उचित मार्ग है, इसे स्वीकार करो। कुछ समय रहकर बादमें हमारे समान तुम भी तपश्चर्याके लिए आना । बेटा ! संसारमें राज्य सुखको आनन्दसे भोगकर बादमें अपने पुत्रको राज्य देकर दोक्षा लेनो मालिगा व मुलिदास्यत्रो प्राप्त चाहिए । यही हमारः नुवंशिक कुलाचार है | क्या इसे तुम उल्लंघन करते हो? इसलिए मुझे आगे भेजो, बादमें तुम आना। यही तुम्हारा कर्तव्य है। अर्ककोतिकुमार निरुपाय होकर कहने लगा कि पिताजी ! ठीक है, कपालमें एक झुरकीके दिखनेसे क्या होता है। इतनी गड़बड़ी क्या है ? कुछ दिन ठहरिये। बादमें दीक्षा ले सकते हैं। इसलिए अभी जल्दी नहीं करें । उत्तरमें सम्राट्ने कहा कि ठीक है ! रह सकता है। परन्तु आयुष्य कर्म तो बिलकुल समीप आ पहँचा है। आप हो घातियाकर्मोको नाश करूंगा । और कल सूर्योदय होते ही मुक्ति प्राप्त करनेका योग है। इस बातको सुनते ही अकंकीतिके हृदयमें बड़ा भारी धक्का लगा। एकदम स्तब्धसा रह गया । परन्तु सम्राट्ने यह कहकर उसे बोलने नहीं दिया कि यदि तुमने फिरसे कुछ कहा तो मेरी सौगन्ध है तुम्हें ! यह राज्य तुम्हारे लिए है, युवराजपद आदिराजके लिए है और बाकीके कुमारोंको छोटे-छोटे राज्योंको देता हूँ। इस प्रकार कहते हुए अपने दूसरे पुत्रोंके तरफ राजाने देखा। वृषभराज ! तुम्हें किस राज्य की इच्छा है ? बोलो । उत्तरमें उस कुमारने निश्चयपूर्वक कहा कि मुझे मोक्ष नामक राज्यकी इच्छा है । मैं तो पिताओके साथ ही आऊंगा | इस राज्यमें तो हरगिज नहीं रहूंगा। ___ हंसराजाको बुलाकर पूछा गया तो उसने संशयरहित होकर कहा कि मैं सिखलोकके सिवाय और किसी राज्यसे प्रसन्न नहीं हो सकता है।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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