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________________ भररोश वैभव २२९ स्थित देवियाँ मूछित होकर गिर पड़ीं। उसी समय उनका प्राण हो निकल माता । परन्तु जमातक सम्रा माग्य शरीरको धारण किए हुए हैं। उन्हें हम लोग देख सकती हैं, इस अभिलाषासे वे आकुलित हो रही थीं । हाय! षोडाधिपति सम्राट्का भाग्य देखते-देखते अदृश्य हो गया? इस संसार के लिए धिक्कार हो । इस प्रकार वे स्त्रियां दुःख कर रही थीं। लोग कहते थे कि षटखंडाधिपतिकी बराबरी करनेवाले लोकमें कोई नहीं हैं, इसकी सम्पत्ति अतुल है । तथापि एक क्षणमें वह सम्पत्ति अदृश्य हो गई, आश्चर्यकी बात है इस प्रकार वे दुःख करने लगीं। हमेशा पतिदेव हमसे कहते थे कि आयुष्कर्मका क्षय होनेके बाद कौन रह सकता है, उसी बात को आज उन्होंने प्रत्यक्ष करके बताया । जीवनको बिगाड़कर वे नहीं चले गये, अपितु कल प्रातःकाल ही मुक्ति जानेवाले हैं यह सूचित कर चले गये हैं। इसलिए हमें भी दीक्षा ही गति है । अब सब लोग उठो, यह कहती हुई सभी देवियाँ चलनेके लिए तैयार हुई। यदि सम्राट् महलमें होते तो हम लोग भी महलमें रहकर सूखका अनुभव करती थीं। परन्तु अब वे तपोवममें चले गये तब यहाँपर रहना उचित नहीं है। वे जिस अंगल में प्रविष्ट हुए वही हमारे लिए परम सुखका स्थान है। हमारी आँखें व मनकी तृप्ति जिस तरह हो उस तरह हमने सुखका अनुभव किया । अब तपश्चर्या कर इस स्त्री पर्यायको नष्ट करना चाहिए, एवं स्वर्गलोकको प्राप्त करना चाहिए । इस प्रकारके निश्चयसे उदासीन वृद्ध स्त्रियां अंतःपुरकी रानियां वगैरह दुःखमें धैर्य धारण कर दीक्षा लेने का निश्चय किया । जाते समय अपने पुत्रोंको आशीर्वाद दिया कि बेटा! आप लोग अपने पिताके समान ही सुखसे राज्य पालन कर बादमें मोक्ष सुखको प्राप्त करना । हम लोग आज सुखके लिए दीक्षा वनमें जाती हैं। इस प्रकार कहती हुई आगे बढ़ों। कुसुमाजी और कुन्तलावती रानी भी अपने रोते हुए पुत्रोंको आशीर्वाद देकर धैर्य के साथ आगे बढ़ीं। पुत्रोंने भी विचार किया कि ऐसे समयमें इनको रोकना उचित नहीं है । अपने पति के हाथसे ही इनको दीक्षा लेने दी। इस विचारसे उन माताओंको पालकीपर चढ़ाकर रवाना किया। जो भाई दीक्षा लेने के लिए गये थे उनको स्त्रियां भी दीक्षाके लिए उद्यत हुई। उनको भो माताओंके साथ ही पालकियों में मेजा। नगरमें सर्वत्र स्त्रिया अपने घरोंमें ऊपरको माडीपर चढ़कर रो रही हैं, प्रजा परिवारमें शोकसमुद्र हो उमड़ पड़ा है। स्त्रिया पीछेसे आ रही
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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