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भरतेश वेभव
२११ हुए चारोंको एकदम नष्ट करनेके उद्योगमें अब वीतराग लगे हैं । आत्माको अब दण्डाकार के रूपमें विचार किया तो वह निर्मल आत्मा शरीरसे बाहर दण्डके आकार में उपस्थित हुआ । पाताल लोकसे लेकर सिद्धलोकतक वह आत्मा अपना रूपसे नौ रजक राग हाडासारगे उपस्थित है। स्वतःके शरीरसे सिगने आयन प्रमाणमें परमात्मा उस समय तीन लोकके लिए एक स्फटिक खम्भेके समान खड़ा है। उसे अब हस्तपादादिक नहीं है पुनः कपाट आकृतिके लिए विचार किया तो एकदम दक्षिणोत्तर फैलकर तीन लोकके लिए एक किवाड़के समान बन गये अब सातरज्जु चौहाईमें, चौदह रज्जु ऊंचाईसे एवं स्वशरीरके तिगुने घनप्रमाण में अब वह परमात्मा विद्यमान है। उसके बादर प्रसरका प्रयोग हुमा तो त्रिलोकरूपो विशाल कुम्भमें आत्मामृत तत्क्षण भर गया। जिस प्रकार ओस त्रिलोकमें भर जाती है उसी प्रकार आत्मा त्रिलोकमें भर गया है अब लोकपुरणकी ओर बढ़ गया, पहिले वातबलयके प्रदेश छूट गये थे । अब उन वातवलयोंके प्रदेशको भी लेकर आत्मा सर्वत्र भर गया । तोन लोकमें अब यत्किंचित् स्थान भी शेष नहीं है। कलासकी शिलापर औदारिक पा। परन्तु तैजस कार्मण तो तीन लोकमें व्याप्त हो गये थे और उनके साथ ही परमात्मकला भो यो । तदनन्तर लोकपूरणके बाद पुनः प्रतर, कपाट व दण्डाकारमें आकर अपने शरीरमें वह परमात्मा प्रविष्ट हुआ। जिस प्रकार एक गोले वस्त्रको निचोड़कर फैलानेपर हवासे वह सूख जाता है, उसी प्रकार वाल्माको फैलानेपर परमात्माके कर्मरूपी द्रव परमाणु सूख गये। - अब तीनों कर्मोकी दशा आयुष्यको बराबरीमें है। अब तीन शरीरों को छोड़कर भगवंत सिद्ध लोकमें चढ़नेके लिए तैयार हए। तेरहवें गुणस्थानवर्ती परमात्मा जब चौदहवें गुणस्थानमें पहुंचते हैं, यहाँ अत्यन्त सूक्ष्म काल है। अ, इ, उ, ऋ, ल, इस प्रकार पांच ह्रस्वाक्षरोंके उच्चारमके अल्पकालमें हो वे सब खेल खतम कर सिद्धलोकमें सिंधारते हैं। प्रथम समयमें वहाँपर बहत्तर कर्म प्रकृतियोंका अन्त हुआ तो अंत्यसमयमें तेरह प्रकृतियोंका अभाव हया । साथमैं तोन शरीर भो अदृश्य हए । वह सकल परमात्मा लोकाग्र भागपर पहुंचे । उसमें एक तीसरा शुक्लध्यान और एक चौथा शुक्लध्यान है ऐसा कहते हैं, परन्तु यह सब कथन करनेकी कुशलता है । उसका सीधा अर्थ तो यही है कि आत्मामें मग्न हुआ।
आदिप्रभुके तीन शरीर अब बिजलीकी तरह अदृश्म हुए तब प्रभु तीन लोकके अग्रभागको एक समयमें पहुँचे । सात रम्पुके स्थानको लंघन करने