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________________ २०६ भरतेश वैभव किया था। वे भरतेश्वरकी अनुमतिको प्रतीक्षामें थे। उसे जानकर भरतेश्वरने उन्हें निश्चित बनाया । देवगण ! मेरे रथ जमीनपर चलें, आप लोग अपने रथोंको आकाशपर चलाइये ! उत्सवमें प्रभावना जितने अधिक प्रमाणसे हो उतना ही उत्तम है। आप लोग कौन हैं ? मेरे ही तो हैं । षट्खंडके भीतर रहनेवाले हैं इसलिए आनन्दसे चलाइये। मुझे इसमें हर्ष है। इस प्रकार कहनेपर सबको आनन्द हुआ। देवदुन्दुभिके साथ देवनृत्य होने लगा, तब गंगादेव और सिंधुदेवके रथ चले गये। इसी प्रकार विद्याधारियोंके नृत्यवेभवके साथ नमिराज व विनमिराजके रथ चले गये, सब लोग जयजयकार कर रहे हैं । मणबद्ध देवोंके रत्नरथ जाने लगे। इसी प्रकार महावैभवसे वरतनु, प्रभासेंद्र, विजयादेवके रथ जाने लगे, हिमवंत देवका रथ प्रत्यक्षा हिमवान पर्वतके समान ही मालूम हो रहा था। तदनन्तर कृतमाल नाट्यमाल देवके रथ चले गये । इस प्रकार बाहर मित्रोंके रथोत्सव होनेपर सम्राट्ने उनको बुलाया व हर्षसे आलिंगन दिया एवं उनको अनेक रत्नादिक प्रदानकर सन्तुष्ट किया। तब उन मागधादि व्यन्तरमुख्याने सम्राट्के चरणमें नमस्कार किया एवं कहने लगे कि राजन् ! आपके हो प्रसादसे ही महत्ता है। बड़े झार्थी प्रापपर उसके पीछे बाकीके छोटे छोटे हाथी जाते हैं, उसी प्रकार आपके साथ हम भी आत्मसुखका अनुभव करते हैं । इस प्रकार प्रतिनित्य नवीन रथ, नवीन पूजा, नवीन नृत्य एवं नवीन रस रसायनका भोजन, इस प्रकार उस यात्रासागरको नवीन नवीन मानन्द ! इस प्रकार चौदह दिन व्यतीत हुए। अन्तिम दिनके तीसरे प्रहरमें उपस्थित सर्वप्रजाओंके सत्कारके लिए सार्वभौमने संघपूजा को व्यवस्था को। उसका क्या वर्णन करें! चौरासी गणधरोंको भक्तिसे नमस्कार कर उनको अनुमति से चतुस्संघको भरतेश्वरने सन्मानित किया। अपसर, पुस्तक, पिंछ आदि उपकरण मुनियोंको, वस्त्रादि अजिकाओंको एवं व्रतियोंको प्रदान कर सन्मान किया। इसी प्रकार ब्राह्मणोंको सुवर्ण रल व दिव्यवस्त्रको प्रदान करते हुए करोडौं ब्राह्मणदम्पतियोंका सन्मान किया । आनन्दको प्राप्त ब्राह्मण भरतेश्वरको शुभकांक्षा करते हुए आशीर्वाद दे रहे हैं । परदारसहोदर हमारे राजा अपने पुत्रकलत्रोंके साथ हजारों वर्ष जीवें इस प्रकार ब्राह्मणस्त्रियाँ आशीर्वाद दे रही हैं। इसी प्रकार मागधादि व्यन्तरोंका भी पूनः सन्मान किया। वितामणि रत्नके होनेपर किस बातकी कमी है। इसी प्रकार गंगादेव, सिंधुदेव,नमि, विनमि मादिका भी रत्नाभरकोसे सन्मान किया। शेष बचे हुए
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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