SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 659
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०५. भरतेश वैभव को शांति हो इस उद्देश्यसे भरतेश्वरने शांतिधारा की। इसी प्रकार रत्न, सुवर्ण, चौदी आदिके द्वारा बने हुए एवं सुगन्धित पुष्पोंसे पुष्पवृष्टि की, उस समय देवगण जयजयकार कर रहे थे। इसी प्रकार रलवृष्टि की गई। बादमें द्वादशगण अपने पुत्र मित्रोंके साथ बहुत आनन्दसे आदिनाथ स्वामीकी तीन प्रदक्षिणा दी। चक्रवर्तीके भक्तिप्रमोदको देखकर देवगण प्रसन्न हो रहे थे। जिनेन्द्रकी वन्दना कर, योगिगण, ब्राह्मण, नरेन्द्रवर्ग आदि सबका यथायोग्य सत्कार र सजाट कार्गन्दुि । हामो योजना कर 'हमें पूजाकी चिन्ता है, आपको आपका भानजा योग्य सत्कार कर रहा है । इस बातको मैं जानता हूँ इस प्रकार नमिराज आदि बांधवोंके साथ सम्राट्ने कहा । युवराज, बाहुबलीके पुत्र महाबल, गृहपति आदिने सबकी इच्छाको जानते हुए सबका सत्कार किया। इसी प्रकार मानव, सुर, व्यन्तरादिकोंके साथ योग्य विनय व्यवहार कर स्वयं सार्वभौम गंगा सटमें पहुंचे, वहाँपर अपने पुत्रोंके साथ एकभुक्ति की । दिन तो इस प्रकार आनन्दसे व्यतीत हुआ। रात्रि भी भगवतकी देहकांतिसे दिन के समान ही घो । पहिलेसे निश्चित समय सब लोग एकत्रित हुए। अवधिज्ञानधारी तो सब जानते ही थे, बाकी लोगोंको सूचना दी गई। सब लोग रथोत्सबके लिए उपस्थित हुए। वापर केलासको लगाकर अत्यन्त सुन्दर आठ रप खड़े हैं। मालूम होते हैं कि आठ पर्वत ही हों, देदीप्यमान पंचरत्नके कलश, प्रकाशमान नवरत्नकी मालाओंसे यक्त सुवर्णक रथ, प्रकाशके पूजके समान थे। उनको देखनेपर कल्पवक्ष, या सुरगिरीके समान मालूम होते थे। मेरुपर्वतके चारों ओरसे आठ पर्वत हैं, उनको तिरस्कृत करते हुए केलासको लगकर ये आठ पर्वत शोभित हो रहे हैं बहुत ही सौन्दयंसे युक्त हैं। अगणित वाद्योंकी घोषणा हुई । भरतेश्वरके इशारेको पाकर वे रथ आठ दिशामोंमें चले गये। इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, वरुण, वायव्य, कोर, ईशान, इस प्रकार आठ दिशाबोंकी ओर आठ रथ चलाये गये। वे इस बातको कह रहे थे कि भगवत आठ कर्मोको नष्ट कर आठगणोंको प्राप्त करनेवाले हैं। इसकी सूचना भरतेश्वरने आठ दिशाओंको भेज दी है । आकाशसे देवगण पुष्पवृष्टि कर रहे हैं। इसके साथ ही रथों के चक्रका शब्द हो रहा है। इस बीचमें व्यन्तर व विद्याबरोंने भी अणित सुन्दररयोंका निर्माण
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy