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________________ भरतेश वैभव जा रहे हैं । ध्यान ही बड़ी भारो तपश्चर्या है, वह योगीको भी हो सकता है, गृहस्थको भी हो सकता है इसके लिए मैं मनाना। इस प्रकार लोकके सामने ढिंढोरा पीटते हुए भरलेश्वर जा रहे हैं। अपने मात्माको जाननेवाला लोकको जान सकता है। अपनेको जाननेवाले हो यथार्थ तपस्वी है। इस बातको सब लोग मुझे देखकर विश्वास करें, यह स्पष्ट करते हुए वह नरनाथ जा रहे हैं। अनेक विमानों में चढ़कर पुत्र व गणबद्धदेव भी उनके साथ जा रहे हैं। ____आनन्दके साथ धीरे-धीरे जब सम्राट्का विमान चल रहा था, तब युवगजने कुछ सोचकर भरतेश्वरसे न कहते हुए कुछ लोगोंके साथ आगे प्रस्थान किया एवं बिजलीके समान अयोध्यानगरी में पहुंचे व वहाँपर मंत्री मित्रों को पंचेश्वर्यकी प्राप्तिका समाचार दिया। सबको मानन्दसे रोमांच हुआ | नगर में आनन्दभेरी बजाई गई। सर्वत्र श्रृंगार किया गया, ध्वज पताकादि सर्वत्र फड़कने लगे। एवं अनेक हाथी, घोड़ा, रथ वगैरहको लेकर सम्राटके स्वागतके लिए युवराज आया। भरतेश्वरके सामने पहुंचकर युवराजने भेंट चढ़ाया व नमस्कार किया । उसे देखकर सर्व कुमारोंने भी वैसा ही किया। इसी प्रकार राजपुत्र, मंत्रो, मित्रोंने भी अनेक भेंट चढ़ाकर चक्रवर्तीका अभिनन्दन किया । सम्राट्ने बहुत वैभवके साथ नगरमें प्रवेश किया । स्तुति पाठकोंकी स्तुति, कवियोंकी कृति, विद्वानोंकी श्रुति और ब्राह्मणोंका आशीर्वाद आदिको सुनते हुए आनन्दसे भरतेश्वर अयोध्या में आ रहे हैं। इसी प्रकार पाठक, मल्ल, वेश्यायें, वेत्रधर आदिकी कीड़ा को देखते हुए वे जा रहे हैं। नगरमें अट्टालिकाओंपर चढ़कर स्त्रियां भरतेश के वैभवको देख रही हैं । परन्तु चक्रवर्तीको दृष्टि उनकी ओर नहीं है। महलमें पहुंचनेपर बाहरके दीवानखानेसे ही सब पुत्र, मित्र, मंत्री आदिको अपने स्थानको रवाना किया एवं स्वयं महलकी ओर चले गये । वहाँपर रानियोंने बहुत आनन्दसे स्वागत किया । एवं भक्तिसे रलकी आरती उतारी । अपने-अपने कंठाभरणको निकालकर भरतेश्वरके चरणों में रखा। पट्टरानीने भी पतिका योग्य सत्कार किया । भरतेश्वरने भी पंचेश्वर्यको प्राप्तिका सर्व वृत्तांत कहते हुए आनन्दसे वह विन बिताया। ___ भरतेशके भाग्यका क्या वर्णन करें ? एके गृहस्थ होते हुए बड़े-बड़े यतियों के लिए भी कष्टसाध्य सम्पदाको प्राप्त करें यह कोई सामान्य विषय नहीं है। भूतन दीक्षित पुत्रोंको देखनेके लिए समवशरण में पहनते हैं, महफिर ध्यानके बलसे विशिष्ट कर्मनिरा करते हैं । एवं सातिशय पंचसम्पतिकी प्राप्त करते हैं। यह सब बातें उनके महापुस्खत्वको व्यक्त
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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