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भरतेश वैभव एक कथा बनाकर चले गये। अनेक व्रतविधानोंका आचरणकर बच्चोंकी अपेक्षासे पंचनमस्कारमंत्रको जपते हए आनन्दके साथ जिन माताओंने उनको जन्म दिया, उनके दिलका शासकर चले गये। आश्चर्य है । रात्रिदिन अहंतदेवकी आराधना कर, योगियोंकी, पादपूजाकर जिन स्त्रियोंने पुत्र होने को हार्दिक कामना की, उनके हृदयको शांत किया ! हाँ ! इन स्त्रियों के उपवास, वत, धादिके प्रभावको सूचित करने के लिए हो मानो ये पुत्र भी शीघ्र हो चले गये । आश्चर्य ! अति आश्चर्य !! उनका व्रत अच्छा हुआ ! व्रतोंके फलसे योग्य पुत्र उत्पन्न हुए । परन्तु उन अतोंका फल माताओंको नहीं मिला, अपितु सन्तानको मिला, आश्चर्य है स्त्रियों के साथ संसारकर जादमें दीक्षा लेना उचित था, परन्तु जब इन लोगोंने ऐसा न कर बाल्यकालमें हो दीक्षा ली तो कहना पड़ता है कि कहीं माताओंने दूध पिलाते समय ऐसा आशीर्वाद सो नहीं दिया कि तुम बाल्यकाल में हो समवसरणमें प्रवेश करो। __ यह मेरे पुत्रों का दोष नहीं है। मैंने पूर्वभवमें जो कर्मोपार्जन किया है उसीका यह फल है । इसलिए व्यर्थ दुःख क्यों करना चाहिये ? इस प्रकार विचार करते हुए अरविंदसे सन्नाट्ने कहा ! हे अरविंद! तुम अभो आकर मुझे कह रहे हो । पहिलेसे आकर कहना चाहिये था । ऐसा क्यों नहीं किया? उत्तरमें अरविंदने निवेदन किया कि स्वामिन् ! हम लोग पहिले यहाँपर कैसे आ सकते थे? हम लोगोंको वे किस चातुर्यसे कैलासपर ले गये ? उसे भी जरा सुननेको कृपा कीजियेगा। "हमलोग पोछे रहे तो कहीं जाकर पिताजीको कहेंगे इसविचारमे हमलोगोंको बुलाकर आगे रक्खा, वे हमारे पोछेसे आ रहे थे" अरविंदने रोते रोते कहा ! 'कहीं पार्श्वभागसे निकल गये तो, पिताजोको जाकर कहेंगे इस विचार से हमें उन सबके बीच में रखकर चला रहे थे । हमारी चारों ओरसे हमें उन्होंने घेर लिया था" अरविंदने औसू बहाते हुए कहा ! "स्वामिन हम लोगोंने निश्चय किया कि आज तपश्चर्या करनेवालोंके साथ हम क्यों जायें ? हम वापिस फिरने लगे तो हमें हाथ पकड़कर खींच ले गये । बड़े प्रेमसे हमारे साथ बोलने लगे। अपने हाथके आभरणको निकालकर हमारे हाथ में पहनाते हैं, और कहते हैं कि तुम्हें दे दिया इस प्रकार जैसा बने तैसा हमें प्रसन्न करनेका यत्न करते हैं। हमारे साथ बहुत नरमाईसे बोलते हैं। कोप नहीं करते हैं। हमारो हालतको देखकर हंसते हैं । अपनो पातको कहकर आगे बढ़ते हैं । राजन् ! हम सब सेवकोंके मुख दुःखसे काले होगये थे । परन्तु आश्चर्य है कि उन सबके मुख हर्षयुक्त होकर कांतिमान हो रहे थे । 'स्वामिन् ! इस