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भरतेश वैभव
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Sarcasion सोन्दर्ययुक्त शरीरको पाकर एकदम मोहका परित्याग करनेवाले कौन हैं ? प्रकार जपणा कर रहे थे ।
हजार सुवर्णमुद्रा मिली तो बस खर्चकर खाकर मरते हैं, परन्तु संसार नहीं छोड़ते हैं । भूवलयको एक छत्राधिपत्यसे पालनेवाले सम्राट्के पुत्र इस प्रकार परिग्रहों का परित्याग करें, यह क्या कम बात है ?
मूछें सफेद हो जाय तो उसे कलप वगैरह लगाकर पुनः काले दिखानेका लोगोंको शौक रहता है । परन्तु अच्छी तरह मूछ आनेके पहिले ही संसारको छोड़नेवाले अतिथि इन कुमारोंके समान दूसरे कौन हो सकते हैं ।
दाँत न हों तो तांबूलको खलबट्टेमें कूटकर तो जरूर खाते हैं । परंतु छोड़ते नहीं हैं । इन कुमारोंने इस बाल्य अवस्थामें संसारका परित्याग किया । आश्चर्य है !
अपने विकृत शरीरको तेल, साबुन, अंतर वगैरह से मलकर सुन्दर बनाने के लिए प्रयत्न करनेवाले लोकमें बहुत हैं । परन्तु सातिशय सौन्दर्य को धारण करनेवाले शरीरोंको तपको प्रदान करनेवाले इन कुमारोंके समान लोकमें कितने हैं ?
काले शरीरको पावडर मलकर सफेद करनेके लिए प्रयत्न करनेवाले लोकमें बहुत हैं । परन्तु पुरुष भी मोहित हों ऐसे शरीरको धारण करने वाले इन कुमारों के समान दीक्षा लेनेवाले कौन हैं ?
भरतचक्रवर्तीकी सेवा करनेका भाग्य मिले तो उससे बढ़कर दूसरा पुण्य नहीं है ऐसा समझनेवाले लोकमें बहुत हैं । परन्तु खास भरतचक्रवर्ती के पुत्र होकर सम्पत्तिसे तिरस्कार करें यह आश्चर्य की बात है ।
इन कुमारोंकी मोक्षप्राप्ति में क्या कठिनता है ? यह जरूर जल्दी हो मोक्षधाम में पधारेंगे इत्यादि प्रकारसे वहपिर देवगण उन कुमारोंकी प्रशंसा कर रहे थे, ये दीक्षितकुमार आत्मयोगमें मग्न थे ।
भरत चक्रवर्ती महान् भाग्यशाली हैं। अखंड साम्राज्य के अतुल वैभव को भोगते हुए सम्राट्को तिलमात्र भी चिता या दुःख नहीं है । कारण वे सदा वस्तुस्वरूपको विचार करते रहते हैं । उनके कुमार भी पिता के समान ही परमभाग्यशाली हैं। नहीं तो, उद्यानवनमें क्रीड़ाके लिए पहुँचते क्या ? वहीसे समवसरण में जाते क्या ! वहाँ तीर्थंकरयोगीके हस्तसे दीक्षा लेते क्या ! यह सब अजब बातें हैं। इस प्रकारका योग बड़े