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________________ १८२ भरतेश वैभव हए कि हम कौन हैं, यह शरीर कौन है, अपने केशपाशको अपने हायसे लंघन करते हुए वहाँ रखने लगे । वे केशपाशको संक्लेशपाश, दुर्मोहपाश, आशापाशव मायापाशके समान फाड़ने लगे। विशेष क्या? जन्मके के समयके समान वे जातरूपधर बने शरीरका आवरण दूर होते हो शरीरमें नवीन कांति उत्पन्न हो गई जिस प्रकार कि माणिकको जलाने. पर उसमें रंग चढ़ता है। __कांति व शांति दानों में वे कुमार जातरूपधर बने कांति अब तो पहिले से बहुत बढ़ गई है । वे बहुत ही भाग्यशाली हैं। भगवान् आदिप्रभु दीक्षागुरु है । कैलास पर्वत दीक्षाक्षेत्र है देवेन्द्र वे गणधर दीक्षाकार्यमें सहायक हैं। ऐसा वैभव लोकमें किसे प्राप्त हो सकता है। स्वस्सिकके ऊपरसे उठकर सभी कुमार आदिप्रभुके चरणों में पहुंचे व भक्तिसे नमस्कार करने लगे, तब वीतरागने आशीर्वाद दिया कि 'आरमसिदिरेवास्तु। इस समय देवगण आकाश प्रदेशमें खड़े होकर पुष्पवृष्टि करने लगे एवं अयजयकार करने लगे। इसी समय करोड़ों बाजे बजने लगे एवं मंगलगान करने लगे । वृषभसेन गणधरने उपकरणोंको वृषभनाप स्वामिके सामने रखा तो नूतन ऋषियोंने वृषभनाथाय नमः स्वाहा कहते हुए महण किया । उनके हाथ में पिछ तो बिजलीके गुच्छके समान मालूम हो रहे थे। इसी प्रकार स्फटिकके द्वारा निर्मित कमंडलुको भी उन्होंने ग्रहण किया एवं बालवयके वे सौ मुनि वहाँसे आगे बढ़े। वृषभसेनाचार्यके साथ वे जब आगे बढ़ रहे थे, तब वहाँ सभी जयजयकार करने लगे। मालूम हो रहा था कि समुद्र उमड़कर घोषित कर रहा हो । _ 'रविकोति योगी आवो, गजसिंहयोगो आवो, दिविजेंद्रयोगी आओ' इस प्रकार कहते हुए योगिजन उनको अपनो सभामें बुला रहे थे। उन्होंने भी उनके बीच में आसन ग्रहण किया। देवेन्द्र शची महादेवीके साथ आये व उन्होंने उन नूतनयोगियोंको बहुत भक्तिके साथ नमस्कार किया। उन योगियोंने भी “धर्मद्धिरस्तु" कहा । देवेन्द्र भी मनमें यह कहते हुए गया कि स्वामिन् ! आप लोगोंके आशोर्वादसे वृद्धि में कोई अन्तर नहीं होगा। अवश्य इसकी सिद्धि होगी। इसी प्रकार या, सुर, गरुड़, गंधर्व, नक्षत्र, देव, मनुष्य आदि सबने आकर उन योगियोंको नमस्कार किया। मुनिकुमारोंने जिनवस्त्राभरण केश आदिका परित्याग किया था उसको देवगमोंने बहुत वैभवके साथ समुद्रमें पहुंचाया जाते समय उनके बैराग्यको भूरि-भूरि प्रशंसा हो रहो थी।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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