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________________ भरतेश वैभव भक्तिसे देख रहे थे। इतनेमें मेघपलटसे जिस प्रकार जल बरसता है उसी प्रकार भगवंत के मुखकमलसे दिव्यध्वनिका उदय हुआ । वे कुमार भवके मूल, भवनाशके मूल कारण एवं मोक्षसिद्धिके साध्यसाधनको कान देकर सुन रहे थे, भगवान् विस्तारसे निरूपण कर रहे थे हे भव्य ! मोक्षामार्गसंधिमें विस्तारसे जिसका कथन किया जा चुका है, वही मोक्षका उपाय है । परिग्रहका सर्वथा त्याग करना हो जिनदीक्षा है बाह्यपरिग्रह दस प्रकारके हैं । अंतरंग परिग्रह चौदह प्रकारके हैं ये चौबीस परिग्रह आत्माके साथ लगे हए हैं। इन चौबीस परिग्रहोंका परित्याम करना ही जिनदीका है क्षेत्र, दास्तु, धान्य, हिरण्य, सुवर्ण, दासो-दास, पशु, वस्त्र, बरतन, इन बाह्य परिग्रहोंसे मोहका त्याग करना चाहिए । इसी प्रकार रागद्वेष मोह हास्यादिक चौदह अन्तरंग परिग्रहोंका भी त्याय करना चाहिए जो अत्यन्त दरिद्र हैं उनके पास बामपरिग्रह कुछ भी नहीं रहते हैं, तथापि अंतरंग परिग्रहोंको त्याग किये बिना कोई उपयोग नहीं है। माग परियों सार करेगन की पारायला त्याग करता है इसलिए बाह्य परिग्रहका त्याग ही त्याग है, ऐसा न समझना चाहिए । 'बाह्मपरिग्रह के त्यागसे जो आत्मविशद्धि होती है, उसके बलसे अंतर्रम मोह रागादिकका परित्याग करें जिससे ध्यानकी व सुखको सिद्धि होती है। __इस बास्मासे शरीरकी भिन्नता है, इस वातको दुद करने के लिए मुनिको केशलोच व इन्द्रियोंके दमनके लिए एकभुक्तिको आवश्यकता है। शरीरशद्धि के लिए कमलु व जीवरक्षाके लिए पिछकी आवश्यकता है एवं अपने शानकी वृद्धि के लिए आचारसूत्रकी आवश्यकता है। बोगियोंक उपकरण हैं। शास्त्रों में वर्णित मूलगुण, उत्तरगुणादि ध्यानके लिए बाह्य सहकारी है ! यह सब ध्यानकी सिदिके लिए आवश्यक हैं। इस प्रकार गंभीरनिनादसे निरूपण करते हुए भगवन्तने यह भी कहा कि अब अधिक उपदेशकी जरूरत नहीं है । अब अपने शरीरके अलंकारों का परित्याग कीजिये । राजवेषको छोड़कर तापसी वेषको ग्रहण कोजिए। सर्व पुत्रोंने 'इच्छामि, इच्छामि, कहते हुए हाथके फलाक्षसको भगवंत के पादमूलमें अर्पण करनेके लिए पासमें खड़े हुए देवोंके हाथमें दे दिया। अपने शरीरके वस्त्रको उन्होंने उतारकर फेंका । इसी प्रकार ठहार, कर्णाभरण, सुवर्णसुद्रिका कतिपुत्र, रस्नमुद्रिका बादि सर्वाभरणोंको भार दिया। तिलक, यज्ञोपवीत, आदिका भी त्याग क्रिया । कह विचार को
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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