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________________ भरतेश वैभव रूपी रल आ गया है उसको ऐसे कौनसे पदार्थ हैं जो नहीं मिल सकेंगे। तीन लोक ही उसकी मुट्ठी में समझना चाहिये । जिसने आत्मानुभवको प्राप्त किया उसे भवभवमें भोग मिलेगा। तीन भव, चार भव, दस भव अथवा जबतक भी वह संसारमें रहेगा तबतक वह बहुत मुखके साथ रहेगा। तदनन्तर उस भवका नाशकर कैवल्यसुसको प्राप्त करेगा। इस आत्मानुभवकी बराबरी करनेवाला भाग्य क्या और कोई है ? नहीं। वह सबसे बड़ा भाग्यशाली है। वह आत्मविनोदी यदि स्वर्ग लोक में जाकर जन्म लेता है तो देवोंको भी आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले सौन्दर्यको प्राप्त करता है । यदि भूलोकमें आकर जन्म लेता है तो वह कामदेव सदृश सुन्दर होकर जन्म लेता है। स्वयं वह कुछ नहीं चाहता है, परन्तु सौभाग्यादिक तो अहमहमिका रूपसे (में पहले मैं पहले इस' भावमे) उसके आश्रयको पानेके लिये स्वयं आते हैं। वह सौभाग्यकी भी इच्छा नहीं करता, इसीलिये वे आते हैं । आत्मरसिकके मनमें लोककी चिन्ता नहीं रहती है, फिर भी सन्न लोक उसकी चिन्ता करते है। लोककी और उसका उपयोग नही होता है। परन्तु आश्चर्य है कि लोकके विचारमें उसीका ध्यान रहता है। जो आत्माविवेकी है, वह अपने समक्ष जाती हुई किसी स्त्रीके हृदयकी बात को तत्काल समझ लेता है। जो स्त्रियाँ पुरुषोंको फंसानेमें प्रवीण हैं उनको हराकर वह उन्हें अपने पीछे फिराता है, परन्तु उनकी ओर उसकी उपेक्षा ही रहती है। उसके थोमसे मन्दहास करने मात्रसे उन स्त्रियोंके हदयमें अपार आनन्द उत्पन्न करता है, परन्तु उन स्त्रियोंफो यह पता नहीं है कि आत्मरसिककी इन्द्रिय और आत्मा अलग-अलग हैं। वह इन्द्रिय से इंसता है, आत्मा से नहीं । उसकी आत्माको बाहरकी बातोंको सिखानेबाले कौन हैं ? कभी-कभी वह आत्मज्ञानी मुग्धा स्त्रीको मोहन कला सिखाकर उसे विदग्धा (चतुर) बनाता है। कभी-कभी उस चतुर स्त्रीको भी अपने वचन चातुर्यसे मुग्धा बना देता है। किसी समय वह मौनसे वह स्त्रियोंके साथ विशेषरूपसे सरस हास्य आदि करनेको उद्यत नहीं होता है। कदाचित् किसी समय वह वैसा करे, तो उसमें विसरताको भी आने नहीं देता। उस हास्थालापसे वह उन स्त्रियोंको अपने वशमें
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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