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भरतेश वंभव सबसे पहिले उन लोगोंने उदय रागको इतना अच्छी तरह गाया कि. यदि उस सन्य पंचर भी वहाँस निकलता तो गायन सुननेको वह वहीं ठहर जाता । ऐसा मालूम हो रहा था कि उस समय एक बार वे गायन समुद्र में प्रविष्ट होकर पुनः उसमें डुबकी लगाकर आ रही हों।
वे उस स्वरको नाभिसे उठा रही थीं, फिर उसे हृदयदेशमें लाकर फैलाती थी । पश्चान् सुन्दर कण्ठमें ध्वनित कर बाहर निकालती थी। वह गायन सचमुच में श्रीदेवीका मंगलगान मालम हो रहा था। उन गायकियोंने उदयरागको गाकर फिर देवगांधारि, भूपालि, धन्यासि, वेळावळि, सौराष्ट्र आदि शुद्ध रागोंका आश्रयकर गायन किया। __ वे उस गायनके साथ हाव-भाव, बिलास, विभ्रम आदि अनेक क्रियायें भी करती जाती थीं। उस समय सुननेवाली राजसभाकी सभी स्त्रियाँ सिर हिला रही थीं।
जिस समय वीणाके तारको वह अंगुलीसे ताड़ित कर रही थी, उस समय भरतश्वर मनमें विचार कर रहे थे कि यह कुशल गायिका इस संसारको नीरस जानकर उसे प्रगट करनेके लिए ही यह क्रिया कर रही है। अब वे स्वर मंडलसे गायन कर रही थीं तब यदि सर, मंडल भी सुनता तो मुग्ध हो जाता; फिर परमण्डलको जीतने में समर्थ भरतेश्वर उसपर क्यों नहीं संतुष्ट होंगे? इतना ही नहीं वह कामरूपी अरिमण्डलको जीतने के लिये भी समर्थ है।
सुननेवाले कहते थे कि इनके समक्ष किन्नरी, विद्याधरी व अप्सराओंका मूल्य क्या है ? उन्होंने भिन्न व अभिन्न भक्तियुक्त किन्नरी वाद्यसे भी सभाको मोहित कर दिया था। ____ भला इसमें आश्चर्य भी क्या है ? वे मायकियाँ सामान्य तो थी नहीं । भरतचक्रवर्तक यहां गायनकी शिक्षा प्राप्त कर चुकी थी अतः श्रोताओंको अत्यंत मोहित करनेकी उसमें किस बात की कमी होगी।
सबसे पहिले अरहंत भगवान्का स्मरण करके बादमें सिद्धपरमेष्ठी एवं मुनिगणोंका बहत भक्तिपूर्वक स्मरण किया। सदनन्तर भोग व योग के विचारको मिश्रितकर के गाने लगीं। क्योंकि वे अच्छी तरह जानती थी कि भरतेश्वरके मन में क्या है ? वे चक्रवर्ती भोग तथा योगको हृदयसे पसंद करते हैं । उनको प्रमन्न करने की दृष्टिसे उन्होंने भोग व योग विचारको निम्नलिखित प्रकारसे गाया ।
सुखका अनुभव करना क्या सरल है ? उसके लिये बड़ी भारी कुशलता चाहिये । इहलोक और परलोककी चिन्ता रखनेवाले चार