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________________ भरतेश वैभव राजन् ! आपने ठीक किया। क्या परदार सोदर ( सहोदर ) भरतके पास पादरी आ सकता है ? आपने पैरसे लात मारी सो बहुत ठीक किया । इससे महाराजको तनिक हुँसी आ गई। राजन् ! तुम्हारी स्त्रियाँ अत्यधिक शीलवती हैं। उनके समीप यदि पादरी आया तो उसको पकड़कर तुम्हारे पास लाई और तुमने उसे लात मारकर दण्ड दिया यह उचित ही किया । इतने में दूसरी रानी आई और आम्रफलको समर्पण कर एक ओर खड़ी हो गई। एक रानी जो मोतीके हारको पहनी हुई थी अपनी भेंट समर्पण करने लगी। एक रानी अपने हाथमें माणिक्य रत्नको लाकर भरतके हाथम देती हुई नमस्कार करने लगी। दूसरी रानी मोतीके एक हारको बहुत भक्तिके साथ भरतके हाथमें रखकर प्रणाम करने लगी। इतने में पण्डिता विनोदसे कहने लगी कि राजन् ! लोकमें मुखसे मुख स्पर्शकर चुम्बन देनेकी पद्धति तो है। परंतु यह आश्चर्यव: का है कि यहाँ दोनों हार रस्पर बुधन देते हैं। इसी प्रकार अनेक रानियोने चांदीके फूल, सोनेके फूल आदि अर्पण किये और वे अपने-अपने स्थानमें खड़ी हो गई । पंक्तिवद्ध स्थित वे रानियाँ उस समय देवांगनाओंके समान मालूम होती थीं। ___महाराज भरतने सबपर एक दृष्टि डाली और कुछ देर बाद हाथ के इशारेसे सबको बैठनेके लिए कहा। पतिकी आज्ञा पाकर सबकी सब मृदु गादीपर वहाँ बैठ गईं। पास में ही पण्डिता बैठ गई। जो गायकियां आई थीं उनको भी बैठनेका इशारा किया अतः वे भी अपने स्थानपर बैठ गई। उस समय वह कामदेवका दरबारसा मालम होता था । भरतके सिवाय वहाँ कोई पुरुष नहीं था । चामर ढारनेवाली उन तरुणियों के बीच भरत अत्यन्त सुन्दर मालम हो रहे थे। इतने में भरतेशने मायकियोंकी ओर अपनी दृष्टि दौड़ाई । गायन आरम्भ हुआ। कमलरसको खींचनेवाला भ्रमर जिस प्रकार उसीमें मग्न होकर गूंजता है, उसी प्रकार गायनकलामें प्रवीण गायकियां मग्न होकर गाने लगीं। उनकी दृष्टि तो राजाकी तरफ, स्मरण रागकी ओर तथा हाथ वीणाके तारपर था। इनमें एकाग्रताको पाकर वे गा रही थीं। प्रातः कालमें बहतसे पक्षी सूर्यके सामने जिस प्रकार मधुर ध्वनि करते हैं, उसी प्रकार राजा भरतके सामने वे देवियां गायन कर रही थीं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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