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________________ भरतेश वैभव इस प्रकार तरह-तरह के विनोद करती हुई ये रानियाँ महलपर चढ़कर आई । अब सभा-भवन बिलकुल पासमें है। रानियाँ आनंदपूर्वक महलपर चढ़कर आ रही हैं यह समाचार राजाको व्यवस्थापक दासियोंसे पहिलेसे मिल गया। सबकी सब रानियाँ उस सभा-भवनमें प्रविष्ट हो पंक्तिबद्ध खड़ी हो गई, फिर एक-एक गनी भेट ममर्पण करने लगी। ___ एक रानी निवफलको भरतके चरणमें समर्पण कर अलग जाकर सुवर्णविबके समान खड़ी हो गई। दुमरी नीलांगी नीलकमलको समर्पणकर अलग जा इन्द्रनील मणिके बिनके समान खड़ी हो गई । एक रानी लाल कमलको समर्पण कर भरता के बायें तरफ माणिककी पुतलीके समान खडी हो गई। एक रानी चंपाके फूलको अर्पणकर स्त्रियोंके बीच में रह गई । एक वृष्ण वर्णकी रानी अपने करकौशलसे रचित पुष्पमालाको लाकर भरतको उपहारमें देने लगी, मानों रतिदेवी ही कामदेवको उपहार दे रही हो। जिस प्रकार रतिदेवी कामदेवको पुष्पके खड़ग व बाण भेंटमें देती है, उसी प्रकार कोई ग़नी श्री भरतको केवड़ाके फूल लाकर समर्पण करने लगी । एक तारुण्यभूषित रानी पहाड़ी कमलको भरतके चरण में रखकर अलग जाकर बहुत विभवसे खड़ी हो गई। एक रानी लज्जित होकर सामने ही नहीं आ रही थी। सबके पीछे-पीछे रही थी। उसे दूसरी रानी हाथ धरकर लाई न उसके हाथसे भेंट दिलाई। एक रानी डर-डरकर आई, व जिस समय भट समर्पण करने लगी उस समय उसके हाथका जपा पृप्प सहसा नीचे गिर गया, तब वह बहत लज्जित हुई। दुमरी रानियाँ उस समय हँसकर कहने लगी कि यह भेंट नहीं है, यह नो पुष्पांजलि है। एक मुग्धा रानी लज्जायुक्त होकर आई। मल्लिका पुष्पको समर्पण करते समय जब वह पूष्प हाथसे सरककर गिर पड़ा तब, वह और भी लज्जित हई । भरतेश कहने लगे कि इतना लज्जित होनेका क्या कारण है ? पुष्प गिर पड़ा तो क्या हुआ? हमारे ऊपर ही तो गिर पड़ा है न ? तुम्हें लज्जित न होना चाहिए। एक रानीने पादरी पुष्पको लाकर भरतके चरणमें रखा। जब चक्रवर्तीने पैरसे उसको जरा सरका दिया तब पण्डिता कहने लगी कि
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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