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भरतेश वैभव तुम आगे क्यों भागी जा रही हो? भागो ! भागो! राजा प्रसन्न होकर तुम्हें अवश्य कुछ न कुछ देगा। जल्दी जाओ, इस प्रकार कोई आगे जानेवाली रानीसे कह रही थी।
वह लज्जित होकर 'अच्छा बहिन ! जिनके पैरसे चला नहीं जाता वे कुछ भी बोल सकती हैं। आपकी इच्छा जो चाहे मो बोलो ! ऐसा कहकर जा रही थी। कोई रानी कह रही थी जरा जल्दी चलो बहिन ! इतना धोरे क्यों चल रही हो! इतने में उसकी हमी उड़ानेकी दृष्टिसे दूसरी रानियाँ कहने लगी कि देखो इसे कितनी जन्दी पड़ी है ? न मालम पतिके मुखका दर्शन किये कितने दिन हो गये हैं ! इसलिये जल्दी दौड़ रही है ! तब वह लज्जित होकर बोली 'अच्छी वान ! आप लोगोंके हितकी बात कही यही भूल की। अब मैं मौन रहँगी' ऐमा कहकर चल रही थी। एक रानी गर्भिणी थी, उसे देखकर दूसरी रानियाँ कहने लगा कि नाहिन ! देखो ! यह ऊपर नहीं चढ़ सवाती । स्वयं चढ़ती है और पेटमें एक वजनको लेकर चढ़ रही है । इसे कितना कष्ट हो रहा होगा ! क्या भरतेश्वरको दया नहीं है। इसे क्यों बुलाया है ? जरा हाथका सहारा लगा दो बहिन ! तब वह स्त्री कहने लगी कि बम रहने दो तुम्हारी बात ! मैं तुमसे आगे जा सकती हूँ, परन्तु आगे जाने पर आप लोग कहती हैं कि इसे पतिको देखनेकी हड़बड़ी है । इसलिये मैं पीछेसे धीरे-धीरे आ रही हूँ।"
इस प्रकार बहतसे विनोद करती हई वे रानियाँ महलपर चढ रही हैं। उनमें एक सनी मौनसे चढ़ रही थी। उसे देखकर दूसरी कहने लगी, देखो! यह मौन धारण करके जा रही है। संभवतः यह मनमें पतिका ध्यान करती हुई जा रही है। इसके मन में क्या है समझ में नहीं आता ? बहिन ! तुमको ऐसा ध्यान किसने सिखाया है ?
वह रानी कहने लगी बहिनों ! घ्यान गान तो तुम और तुम्हारा पति जाने । हम सरीखी उसे क्या समझे। हाँ ! तुम लोगोंके बार्तालाप को मुनती हुई ब मनमें प्रसन्न होती हुई मैं मौनसे आ रही हूँ, और कोई बात नहीं है।
पीछे रहें, आगे जावें,बोले या मौन रहे, प्रत्येक अवस्थामें आप लोग कुछ कल्पना करती हो। तुमको जीतने में पतिदेव ही समर्थ हैं । ___ अब रहने दो विनोद ! सभा-भवन समीप आ गया है । अब बहुत गंभीरतासे आइयेगा । अपनी बात उधर सुननेमें आयेगी, इसलिए बहुत सावधान चित्तसे चलो।