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________________ भरतेश वैमन ध्यानके समय निर्जरा होती है । ध्यान जिस समय न लगे उस समय ध्यान शास्त्रको छोड़कर अन्य विचारमें समय बिताये तो हाथोके स्नानके समान है। वचन व कायमें चंचलता आनेपर भी मनको तो आत्मा में ही लगाना चाहिए। आत्मामें उस मनको लगावे तो राग द्वेषको उत्पत्ति नहीं होतो है । रागद्वेषके अभावसे संवरको सिद्धि होती है। इस आत्माको एक तरफसे कम आता है और एक तरफसे जाता है। आया हआ कर्म बद्ध होता है। इस प्रकार आत्मा सदा कमसे बद्ध रहता है । इसलिए आते हुए कमोंके द्वारको बन्द करके, पहलेके आये हुए कर्मोंको आत्मप्रदेशसे निकाल बाहर करें तो यह आत्मा मोक्षमंदिर में जा विराजता है। उसके मार्गको न समझकर यह आत्मा व्यर्थ हो संसारमें परिभ्रमण कर रहा है। सरोवरको आनेवाले पानोको रोककर पहले संचित जलको निकाल देव तो जिस प्रकार वह रिक्त होता है, उसी प्रकार संवर व निर्जराके मिलने पर आत्मसिद्धि होती है। धूलसे धुंधले हुए दर्पणको साफ करने पर जिस प्रकार उसमें मुख दिखता है, उसो प्रकार कर्मधुलसे मलिन लेपको सुध्यानके बलसे दूर करें तो यह आत्मा परिशुद्ध होता है। हे भव्य ! यह निर्जरा तत्व है। इसे प्राप्त कर यह आत्मा आठों कोंको निर्जरा करते हुए समस्त कर्मोको जब दूर करता है एवं अपने आरमामें स्थिर होता है उसे मोक्ष कहते हैं । एकदेश अंशमें कर्मोका निकलना उसे निर्जरा कहते हैं। समस्त कर्मोका क्षय होना उसे मोक्ष कहते हैं। मोक्ष और निर्जरामें इतना ही अन्तर है। कोई-कोई आत्मा पहले धातिया कर्मोंको नाश करते हैं और बादमें अघातिया कोको नाश करते हैं। और कोई घातिया और अघातिया कर्मोको एक ही साथ नाश कर मुक्तिको जाते हैं । ___ कोई दंड, कपाट, प्रतर, लोकपूरणको करके मुक्तिको जाते हैं, और कोई इन चार समुद्घातको अवस्थाको प्राप्त न करके ही मुक्ति चले जाते हैं। विशरीररूपी कारागृहको जलाकर अष्टगुणोंको यह आत्मा जब वशमें कर लेता है तब वह अशरीर आत्मा एक ही समय में अमृतलोकमें पहुंच जाता है। ____ वह सिंहलोक इस भूलोकसे सात रज्जु जन्नत स्थान पर हैं। परन्तु सात रज्जुओके स्थानको यह आत्मा लीलामात्रसे एक ही समयमें तय कर जाता है।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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