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________________ भररोश वैभव १३९. वचन, काय, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य एवं पंच इंद्रिय अर्थात् स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, इस प्रकार ये दस प्राण हैं । यह आत्मा कभी पांच इंद्रियोंसे युक्त रहता है, कभी एक, दो, तीन या चार इन्द्रियोंसे युक्त रहता है । इसलिए उन प्राणों में भी चार छह, सात, आठ, नौ, इस प्रकारके विभाग होते हैं। एक एक इन्द्रियको आदि लेकर एन इन्सिग जो जी करता है उसमें प्राणोंका विभाग भी ४-६-७-८-९ के रूपमें कैसा होता है इसका वर्णन सुनो । वृक्ष लता आदि एकेंद्रिय जीब हैं। वे स्पर्शन इन्द्रिय मात्र से युक्त है । इसलिए स्पर्शनेंद्रिय, काय, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य, इस प्रकार उन जीवोंको चार प्राण हैं। वायु, अग्नि, जल, भूमि ये चार जिनके शरीर हैं। वे भी एकेंद्रिय जीव हैं। वे इस संसार में विशेष दुःखको प्राप्त होते है । कोई कीटक वगैरह दो इन्द्रिय अथात् स्पर्शन रमनासे युक्त हैं । वे स्वरमात्र वचनसे मो युक्त हैं। इसलिए पूर्वोक्त ४ प्राणोंके साथ रसनेंद्रिय व वचनको मिलाने पर छह प्राण होते हैं । चींटी आदि प्राणी तीन इन्द्रियके धारी हैं। स्पर्शनसे, रसना से एवं वासके द्वारा पदार्थों को वे जानते हैं। इसलिए तीन इन्द्रियधारी प्राणियों में प्राण होते हैं। मक्खी, भ्रमर आदि स्पर्शन, रसना, घ्राण व चक्षु इस प्रकार चार इन्द्रियको धारण करनेवाले जीव हैं। वे ८ प्राणोंको धारण करते हैं । कोई तिर्यंच प्राणियों में सुनने का सामर्थ्य है इसलिए पाँच इन्द्रिय तो हुए। परंतु मन न होनेसे वे नो प्राणोंको धारण करते हैं । मन नामका प्राण हृदय में अष्टदलाकार कमलके समान रहता है । उसमें यह जीव विचार किया करता है। बनगज, पशु, घोड़ा, आदियों में भी कुछ प्राणियोंको मन है । कुछको नहीं । इसलिए उन पंचेंद्रिय प्राणियोंको जहाँ मन है अर्थात् जो समनस्क हैं उनको दस प्राण होते हैं, मनुष्यों को भी दस प्राण होते हैं। तिथंचों में कोई समनस्क, कोई अमनस्क इस प्रकार दो भेद हैं। परन्तु नारकी, देव, मनुष्य ये दस प्राणोंके धारी होते हैं । हे भव्य ! एकेन्द्रियसे पंचेंद्रियतक लोकमें जोब जीते हैं, उनकी रीति यह है । इसे तुम अच्छी तरह ध्यान में रखो । बाहरसे ओदारिक नामक शरीर है। और अन्दर तेजस, कार्याण
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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